राघव को मैं न दूंगा मुनिनाथ मरते मरते ,मेरे प्राण

राघव को मैं न दूंगा मुनिनाथ मरते मरते ,मेरे प्राण








राघव को मैं न दूंगा मुनिनाथ मरते मरते ,
मेरे प्राण न रहेंगे यह दान करते करते ॥ 



जल के बिना कदाचित मछली शरीर धारे,
पर मैं  न जी सकूंगा इनको बिना निहारे ,
कौशिक सिहर रहे हैं मेरे अंग डरते डरते ॥1 ॥ 



कर यत्न चौथेपनं मे सुत  चार मैंने पाये ,
पितु मातु पुरजनों को रघुचंद्र ने जिलाये,
लोचन चकोर तन्मय  छविपान  करते करते || 2 ॥ 



चलते विलोक प्रभु को होगा उजाड़ कौशल,
मंगल भवन के जाते संभव कहाँ है मंगल,
सीचें कृपालु तरु को मृदुपात झरते झरते ॥ 3  ॥ 



होवे प्रसन्न मुनिवर लै राजकोष सारा
रानी सुतो के संग में वन में करूँ गुजारा
ले गोद राम शिशु को सुख मोद भरते भरते ॥ 4 ॥ 



लड़के  है राम लक्ष्मण कैसे करे लड़ाई
गिरिधर प्रभु को देते बनता नही गुसाई
कह  यूँ  पड़े चरण पर दृग नीर ढ़रते  ढ़रते ॥ 5 ॥ 





                                    



जय श्री राधे कृष्ण



       श्री कृष्णाय समर्पणम्



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