
घनश्याम तुझे ढूढने जाए कहां कहां
अपने विरह की आग लगाए कहाँ कहाँ।
तेरी नजर मे जुल्फ मे मुस्कान मधुर मे
उलझा सभी मे दिल है छुडाए कहाँ कहाँ ॥ 1 ॥
तेरे चरण की खाक मे हम खाक बन गए
अब खाक मे हम खाक रमाए कहाँ कहाँ ॥ 2 ॥
जिनकी तमीज देखकर हम हो गए मरीज
ऐसे मरीज मर्ज अब छुडाए कहाँ कहाँ ॥3॥
दिन रात अस्रु बिंदु ये बहते तो है मगर
इस तन मे लगी आग बुझाए कहाँ कहाँ ॥ 4 ॥
जय श्री राधे कृष्ण
श्री कृष्णाय समर्पणम्
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