
जय गौर हरि
बन्दौ पद नखचन्द्र किशोरी ।
श्रीवृष्भानु-भवन की भानु
कीरति-कुलहि कलानिधि गोरी॥1||
वृन्दावन सुख सम्पति श्यामा
रसिकन जीवनि प्रीतम-जोरी।
परम उदार सुह्यद करुणावली
महाभाव-मूरति अति भोरी॥2||
भटक्यौ पथ पाथर ज्यौँ
लागि रही मति मोरी ठगोरी।
'श्याम' अपनपौ तुव पद हारयो
स्वामिनि बांह गहो अब मोरी।।3||
जय श्री राधे कृष्ण
श्री कृष्णाय समर्पणम्
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