
नन्द के लाल हरयौ मन मोर।
हों अपने मोतिन लर पोवत,
कांकर डारि गयो सखी भोर।।
बंक बिलोकन चाल छबीली,
रसिक सिरोमनि नन्द किसोर।
कहि कैसे मन रहत श्रवण सुनि,
सरस मधुर मुरली की घोर।।
इंदु गोविंद बदन के कारण ,
चितवन कों भये नैन चकोर।
जय श्रीहित हरिवंश रसिक रस जुवती,
तू ले मिल सखी प्रान अकोर।।
जय श्री राधे कृष्ण
श्री कृष्णाय समर्पणम्
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