
श्री राधारमणो जयति
तोसों लाग्यो नेह रे प्यारे,
नागर नंद कुमार।
मुरली तेरी मन हर्यो,
बिसर्यो घर-व्यौहार।।
जब तें सवननि धुनि परि,
घर आँगन न सुहाई।
पारधि ज्यूँ चूकै नहीं,
मृगी बेधी दइ आइ ||1||
पानी पीर न जानई ज्यों
मीन तड़फि मरि जाइ।
रसिक मधुप के मरम को
नहिं समुझत कमल सुभाइ||2||
दीपक को जो दया नहिं,
उड़ि-उड़ि मरत पतंग।
'मीरा' प्रभु गिरिधर मिले,
जैसे पाणी मिलि गयो रंग||3||
जै श्री राधे कृष्ण
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श्री कृष्णायसमर्पणं
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