
हरि खेलत फ़ाग मची होरी।
माघ उतरि ऋतु फ़ागुन आयी,
घर-घर श्याम करत फ़ेरी॥1||
फ़ेंट गुलाल हाथ पिचकारी,
केसर पीत सुरंग बोरी॥2||
ब्रह्मा खेलें महादेव खेलें,
सुरपति खेलें बरजोरी ||3||
सूरदास छवि देख मगन भये,
हरि के चरण पै लगै डोरी ||4||
जय श्री राधे कृष्ण
श्री कृष्णाय समर्पणम्
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