
सखी री! राधावल्लभ से हमारी लड़ गयी अँखियाँ,
बचायी थी बहुत लेकिन, निगोड़ी लड़ गयी अँखियाँ ।
ना जाने क्या किया जादू, ये तकती रह गयी अँखियाँ,
चमकती हाए बरछी सी, कलेजे गड गयी अँखियाँ ||1||
चहुँ दिस रस भरी चितवन, मेरी आँखों में लाते हो,
कहो कैसे कहाँ जाऊं, ये पीछे पड़ गयी अँखियाँ ||2||
भले ये तन से निकले प्राण, मगर ये छवि ना निकलेगी,
अँधेरे मन के मंदिर में, मणि सी गड गयी अँखियाँ ||3||
जय श्री राधे कृष्ण
श्री कृष्णाय समर्पणम्
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