तर्ज़ - नफरत की दुनिया को छोड़करमेरी जीवन नैया डूब

तर्ज़ - नफरत की दुनिया को छोड़करमेरी जीवन नैया डूब








तर्ज़ - नफरत की दुनिया को छोड़कर





मेरी जीवन नैया डूब रही है, भव सागर में श्याम,
पार लगादो घनश्याम |


ये मोह माया के भँवर में फँसकर, डगमग डोले श्याम,
पार लगादो घनश्याम |




                
ये जगत के बाज़ीगर, मुझे घेर लेते हैं
मुझे धोखा दे देकर, मुँह फेर लेते हैं
मैं लाख बचावूं दामन फिर भी, जकड़ ये लेते श्याम
फन्दे छुड़ादो मेरे श्याम ||1||
                


भक्ति की राहों में, काँटे क्यूँ बिछ जाते 
सज्जन के वेषों में, दुर्जन क्यूँ मिल जाते
मुझको पथ से विचलित करने की, जुगत भिड़ाते श्याम
इनसे बचालो मुझे श्याम ||2||


               
मुख पर है तुम्हारा नाम, पर दिल में मैल भरा
'रवि' कहता ये कैसा, इस जग ने खेल रचा
तेरी छत्तर छाया क्या होती है, ये क्या जाने श्याम,
इनको बतादो ज़रा श्याम ||3||
               

जय श्री राधे कृष्ण



       श्री कृष्णाय समर्पणम्

Previous Post
Next Post

post written by:

0 Comments: