गुरू की वाणी अमृत जैसामीठा नहीं मधुर कोई वैसा ।बरसों

गुरू की वाणी अमृत जैसामीठा नहीं मधुर कोई वैसा ।बरसों







गुरू की वाणी अमृत जैसा
मीठा नहीं मधुर कोई वैसा ।
बरसों की प्यासी धरती पर,
इन्द्रदेव की कृपा के जैसा ।

गुरू ही सबको मार्ग बतावें
सबको सदा सुपंथ चलावे ।
उस मार्ग पर सदा जो चलता
होता भला सदा ही उसका ।




जाति—पांति का भेद मिटाकर
सब से सच्ची प्रीत लगाकर ।
मानव की सेवा जो करता
निज धाम को प्राप्त वो करता ।




गुरू का वचन सदा जो माना
भव—बन्धन से है छुटि जाना ।
सब व्याधि को दूर वो कर दें
जन्म—मरण की पीड़ा हर लें ।




गुरू की वाणी औषधि ऐसा ।
गुरू की वाणी अमृत जैसा ।।











जय श्री राधे कृष्ण
श्री कृष्णाय समर्पणम्_

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