
काया शुद्ध होत
जब ब्रज रज उड़ि अंग लगे
माया शुद्ध होत
कृष्ण नाम लुटाये तै।
शुद्ध होत कान
कथा कीर्तन श्रवण कीये।
नैंन शुद्ध होत
दर्श युगल छवि पाये तै||1||
हाथ शुद्ध होत
श्रीठाकुरकी सेवा किये।
पाँव शुद्ध होत
श्रीवृन्दावन जाये तै ||2||
मस्तक शुद्ध होत
श्रीपति चरण परे।
रसना शुद्ध होत
श्यामा श्याम गुण गाये तै ||3||
जय श्री राधे कृष्ण
श्री कृष्णाय समर्पणम्
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