तोड़-फोडक़र मुझे बना लो, प्रभु!अपने मन के अनुकूल।रहने दो न

तोड़-फोडक़र मुझे बना लो, प्रभु!अपने मन के अनुकूल।रहने दो न






तोड़-फोडक़र मुझे बना लो, प्रभु!अपने मन के अनुकूल।
रहने दो न किसी भी बाधक वस्तु-परिस्थिति को तुम भूल॥




तुरत छीन लो उस धन को, इज्जत को, जो बाधक हो अल्प।
कर दो ऐसा सारा सुख-विध्वंस, तुरत करके संकल्प॥1||





मेरे मनमें उठे कभी यदि तनिक कहीं ऐसा अभिलाष।
जो बाधक हो इसमें, कर दो तुरत, दयामय! उसका नाश॥2||





करने मत दो, हाथ-पैर-मुख-मनको ऐसा को‌ई काम।
जिससे तनिक तुम्हारी अविरत स्मृति में आये क्षणिक विराम॥3||



पूज्य हनुमानप्रसादजी पोद्दार



जय श्री राधे कृष्ण



       श्री कृष्णाय समर्पणम्

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