घनश्याम कहाँ जाकर बरसे, हर घाट गगरिया प्यासी हैउस ओर

घनश्याम कहाँ जाकर बरसे, हर घाट गगरिया प्यासी हैउस ओर



घनश्याम कहाँ जाकर बरसे, हर घाट गगरिया प्यासी है
उस ओर ग्राम इस ओर नगर, चंहु ओर नजरिया प्यासी है |




रसभरी तुम्हारी वे बुंदियाँ, कुछ यहाँ गिरीं, कुछ वहाँ गिरीं
दिल खोल नहाए महल-महल, कुटिया क्या जाने, कहाँ गिरीं
इस मस्त झड़ी में घासों की, कमजोर अटरिया प्यासी है ||1||



जंजीर कभी तड़का-तड़का, तकदीर जगाई थी हमने 
हर बार बदलते मौसम पर, उम्मीद लगाई थी हमने 
जंजीर कटी, तकदीर खुली, पर अभी नगरिया प्यासी है ||2||




धरती प्यासी, परती प्यासी, प्यासी है आस लगी खेती
जब ताल तलैया भी सूखी, क्या पाए प्यास लगी रेती
बागों की चर्चा कौन करे, अब यहाँ डगरिया प्यासी है ||3||



मुस्लिम के होंठ कहीं प्यासे, हिंदू का कंठ कहीं प्यासा 
मन्दिर-मस्ज़िद-गुरूद्वारे में, बतला दो कौन नहीं प्यासा
चल रही चुराई हुई हँसी, पर सकल बजरिया प्यासी है ||4||



बोलो तो श्याम घटाओं ने, अबकी कैसा चौमास रचा
पानी कहने को थोड़ा सा, गंगा-जमुना के पास बचा
इस पार तरसती है गैया, उस पार गुजरिया प्यासी है ||5||



जो अभी पधारे हैं उनका, सुनहरा सबेरा प्यासा है
जो कल जाने वाले उनका भी रैन-बसेरा प्यासा है
है भरी जवानी जिन-जिनकी, उनकी दुपहरिया प्यासी है ||6||



कहने को बादल बरस रहे, सदियों से प्यासे तरस रहे
ऐसे बेदर्द ज़माने में, क्या मधुर रहे, क्या सरस रहे
कैसे दिन ये पानी में भी, हर एक मछरिया प्यासी है ||7||


जै श्री राधे कृष्ण

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श्री कृष्णायसमर्पणं



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