
मेरे सद्गुरु देव जी नित तुम्हरी शरण गहूँ ।चरण बिठाये
मेरे सद्गुरु देव जी नित तुम्हरी शरण गहूँ ।
चरण बिठाये लीजो नाथ मोहे स्यामास्याम कहूँ ।।
मुझ कपटी मलिन पातकी के काटो जग के बन्ध ।
कल्मष भरा मलिन हृदय मेरो विषयन की छूटे फन्द||1||
हाथ रख्यो मेरे शीश नाथ मेरो तेरो भरोसो मोय ।
स्यामास्याम सेवा में राख्यो दासी की विनती होय ||2||
सद्गुरु देव ठौर आपकी और कितहुँ मैं जाऊँ ।
तुम्हरी कृपा सों तुम्हरे बल सों युगल सेवा पाऊँ ||3||
मेरो बल ना होय नाथ कोऊ तुम ही बल मेरे देवा ।
तुम्हरी शरण में हूँ सनाथ मैं आप ही दीजो सेवा ||4||
जै श्री राधे कृष्ण
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श्री कृष्णायसमर्पणं
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