
तुम हो नंदलाल जनम के कपटीऔरों की गागर नित उठ
तुम हो नंदलाल जनम के कपटी
औरों की गागर नित उठ भरते,
मेरी मटकी मझधार में पटकी
तुम हो नंदलाल जनम के कपटी ||1||
औरों का माखन नित उठ खाते,
मेरो माखन अधरन बिच अटक्यो
तुम हो नंदलाल जनम के कपटी ||2||
औरों को दर्शन नित उठ देते,
मेरी अखियन दर्शन को तरसीं
तुम हो नंदलाल जनम के कपटी ||3||
औरों की गैया नित ही चराते,
मेरी गैया वन वन में भटकीं
तुम हो नंदलाल जनम के कपटी ||4||
जै श्री राधे कृष्ण
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श्री कृष्णायसमर्पणं
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