पूज्य हनुमानप्रसाद जी पोद्दार » पद-रत्नाकर » बना दो बुद्धिहीन

पूज्य हनुमानप्रसाद जी पोद्दार » पद-रत्नाकर » बना दो बुद्धिहीन



पूज्य हनुमानप्रसाद जी पोद्दार » पद-रत्नाकर »


बना दो बुद्धिहीन भगवान।




तर्क-शक्ति सारी ही हर लो, हरो ज्ञान-विज्ञान ।

हरो सभ्यता , शिक्षा, संस्कृति, नये जगतकी शान॥1||




विद्या-धन-मद हरो, हरो हे हरे! सभी अभिमान।

नीति-भीतिसे पिंड छुड़ाकर करो सरलता दान ||2||




नहीं चाहिये भोग-योग कुछ, नहीं मान-समान।

ग्राम्य, गँवार बना दो, तृण-सम दीन, निपट निर्मान||3||




भर दो हृदय भक्ति-श्रद्धासे करो प्रेमका दान।
प्रेमसिन्धु! निज मध्य डुबाकर मेटो नाम-निशान||4||


जै श्री राधे कृष्ण

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श्री कृष्णायसमर्पणं

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