
जाको मन लाग्यो गोपालसों,
ताहि और कैसे भावे हो
लेकर मीन दूध में राख्यो,
जलबिन सचु नहि पावे हो ||1||
ज्यों शूरा रणधूम चलत है,
पीड न काहू जनावे।
ज्यों गुंगो गुड खाय रहत है,
सुख स्वाद नहिं बतावे||2||
जैसे सरिता मिली सिंधुमें
उलट प्रवाह न आवे ।
जैसे सूर कमलमुख निरखत
चित्त इत उत न डुलावे ||3||
जै श्री राधे कृष्ण
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श्री कृष्णायसमर्पणं
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