तुम्हारी भक्ति हमारे प्रान।छूटि गये कैसे जन जीवै, ज्यौं प्रानी

तुम्हारी भक्ति हमारे प्रान।छूटि गये कैसे जन जीवै, ज्यौं प्रानी









तुम्हारी भक्ति हमारे प्रान।

छूटि गये कैसे जन जीवै, ज्यौं प्रानी बिनु प्रान॥


जैसे नाद-मगन बन सारंग, बधै बधिक तनु बान।
ज्यौं चितवै ससि ओर चकोरी, देखत हीं सुख मान॥


जैसे कमल होत परिफुल्लत, देखत प्रियतम भान।
सूरदास, प्रभु हरिगुन त्योंही सुनियत नितप्रति कान॥

जै श्री राधे कृष्ण
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श्री कृष्णायसमर्पणं



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