
ना करना इन्कार, ना मानेंगे हम हार,
ना छोड़ेंगे अधिकार, प्यार तेरा पाकर मानेंगे ।।
पछताओगे साँवरिया जो करोगे आना-कानी,
नटने से पहले दिल में जरा सोच लो दाता दानी,
ये नाम तेरा बदनाम तेरा, हो जायेगा लखदातार ।।
ना करना इन्कार, ना मानेंगे.....
इतना बतलादो पहले क्यूँ रची हमारी काया,
काया में दिल धड़का के धड़कन में क्यूँ समाया,
तेरे बिन ये दिल मेरा कहीं लगता नहीं दिलदार ।।
ना करना इन्कार, ना मानेंगे.....
अग्नि में तेज तूं ही धरती में तेरी खुशबू,
जल में थल में पवन में, आकाश में तूं ही तूं,
सब मे रचा सब मे बसा, करता रहता खिलवाड़ ।।
ना करना इन्कार, ना मानेंगे.....
कण-कण में रम रही है प्यारी छवि तुम्हारी,
तूं खास है बिहारी मेरा, तेरा मैं दास 'बिहारी',
बेकार में तकरार में, क्या रखा मेरे सरकार ।।
ना करना इन्कार, ना मानेंगे.....
श्री कुंजबिहारी जी सोनी 'बिहारी' द्वारा 'ना कजरे की धार, ना मोती के हार' गीत की तर्ज़ पर रचित रचना ।
जै श्री राधे कृष्ण
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श्री कृष्णायसमर्पणं
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