मेरा मन पंछी ये बोले उर बृन्दाबन जाऊँ,बृज की लता
मेरा मन पंछी ये बोले उर बृन्दाबन जाऊँ,
बृज की लता पता में मैं राधे-राधे गाऊँ,
मैं राधे-राधे गाऊँ श्यामा-श्यामा गाऊँ|
बृंदाबन के महिमा प्यारे कोई ना जाने,
प्रेम नग़रिया मन-मोहन की प्रेमी पहचाने,
बृज गलियों में झूम-झूम के मन की तपन बुझाऊँ ||1||
निधिबंन जी में जहाँ कन्हैया रास रचाते है,
प्रेम भरी अपनी बाँसुरिया मधुर बजाते है,
राधा संग नाचे साँवरिया दर्शन करके आऊ,||2||
छेल-छबीले कृष्ण पीया तेरी याद सताती है,
कुहु-कुहु कर काली कोयल दिल तड़पाती है,
छीन लिया सब तूने मेरा यार कहाँ अब जाऊँ,||3||
राधे-राधे जपले मनवा दुःख मीट जायेंगे,
राधा-राधा सुनकर कान्हा दौड़े आयेंगे,
प्यारे राधा-रमन तुम्हारे चरणों में रमजाऊँ,||4||
जै श्री राधे कृष्ण
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श्री कृष्णायसमर्पणं
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