यौं सुधि लीजौ नवल किशोरी वृन्दावन की ललित लतनि में, गिनती
यौं सुधि लीजौ नवल किशोरी
वृन्दावन की ललित लतनि में, गिनती कीजौ मोरी ।।
गोरी घटा सावरी हिलमिल, उमडत प्रेम हिलोरी
कबहुँ कबहुँ बलि सीचत रहियो, लाड भरी दृग कोरी ।।
कबहुँ दिये ललित गलबहियां , छाह विरमियो थोरी ,
कबहुँ झुला डारि झूलियो , रसिक रंगीली जोरी ।।
फूलि-फूलि कै चटकत कलियन ,खोलो आंख करोरी ,
निसि वासर देखत न अघाऊ, इतनो जाचत भोरी ।।
जै श्री राधे कृष्ण
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श्री कृष्णायसमर्पणं
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