81. देही गावा जीउ धर महतउ बसहि पंच किरसाना
देही गावा जीउ धर महतउ बसहि पंच किरसाना ॥
नैनू नकटू स्रवनू रसपति इंद्री कहिआ न माना ॥१॥
बाबा अब न बसउ इह गाउ ॥
घरी घरी का लेखा मागै काइथु चेतू नाउ ॥१॥ रहाउ ॥
धरम राइ जब लेखा मागै बाकी निकसी भारी ॥
पंच क्रिसानवा भागि गए लै बाधिओ जीउ दरबारी ॥२॥
कहै कबीरु सुनहु रे संतहु खेत ही करहु निबेरा ॥
अब की बार बखसि बंदे कउ बहुरि न भउजलि फेरा ॥३॥७॥1104॥
82. राजन कउनु तुमारै आवै
राजन कउनु तुमारै आवै ॥
ऐसो भाउ बिदर को देखिओ ओहु गरीबु मोहि भावै ॥१॥ रहाउ ॥
हसती देखि भरम ते भूला स्री भगवानु न जानिआ ॥
तुमरो दूधु बिदर को पान्हो अम्रितु करि मै मानिआ ॥१॥
खीर समानि सागु मै पाइआ गुन गावत रैनि बिहानी ॥
कबीर को ठाकुरु अनद बिनोदी जाति न काहू की मानी ॥२॥९॥1105॥
83. दीनु बिसारिओ रे दिवाने दीनु बिसारिओ रे
दीनु बिसारिओ रे दिवाने दीनु बिसारिओ रे ॥
पेटु भरिओ पसूआ जिउ सोइओ मनुखु जनमु है हारिओ ॥१॥ रहाउ ॥
साधसंगति कबहू नही कीनी रचिओ धंधै झूठ ॥
सुआन सूकर बाइस जिवै भटकतु चालिओ ऊठि ॥१॥
आपस कउ दीरघु करि जानै अउरन कउ लग मात ॥
मनसा बाचा करमना मै देखे दोजक जात ॥२॥
कामी क्रोधी चातुरी बाजीगर बेकाम ॥
निंदा करते जनमु सिरानो कबहू न सिमरिओ रामु ॥३॥
कहि कबीर चेतै नही मूरखु मुगधु गवारु ॥
रामु नामु जानिओ नही कैसे उतरसि पारि ॥४॥१॥1105॥
84. उसतति निंदा दोऊ बिबरजित तजहु मानु अभिमाना
उसतति निंदा दोऊ बिबरजित तजहु मानु अभिमाना ॥
लोहा कंचनु सम करि जानहि ते मूरति भगवाना ॥१॥
तेरा जनु एकु आधु कोई ॥
कामु क्रोधु लोभु मोहु बिबरजित हरि पदु चीन्है सोई ॥१॥ रहाउ ॥
रज गुण तम गुण सत गुण कहीऐ इह तेरी सभ माइआ ॥
चउथे पद कउ जो नरु चीन्है तिन्ह ही परम पदु पाइआ ॥२॥
तीरथ बरत नेम सुचि संजम सदा रहै निहकामा ॥
त्रिसना अरु माइआ भ्रमु चूका चितवत आतम रामा ॥३॥
जिह मंदरि दीपकु परगासिआ अंधकारु तह नासा ॥
निरभउ पूरि रहे भ्रमु भागा कहि कबीर जन दासा ॥४॥१॥1123॥
85. काम क्रोध त्रिसना के लीने गति नही एकै जानी
काम क्रोध त्रिसना के लीने गति नही एकै जानी ॥
फूटी आखै कछू न सूझै बूडि मूए बिनु पानी ॥१॥
चलत कत टेढे टेढे टेढे ॥
असति चरम बिसटा के मूंदे दुरगंध ही के बेढे ॥१॥ रहाउ ॥
राम न जपहु कवन भ्रम भूले तुम ते कालु न दूरे ॥
अनिक जतन करि इहु तनु राखहु रहै अवसथा पूरे ॥२॥
आपन कीआ कछू न होवै किआ को करै परानी ॥
जा तिसु भावै सतिगुरु भेटै एको नामु बखानी ॥३॥
बलूआ के घरूआ महि बसते फुलवत देह अइआने ॥
कहु कबीर जिह रामु न चेतिओ बूडे बहुतु सिआने ॥४॥४॥1123॥
86. टेढी पाग टेढे चले लागे बीरे खान
टेढी पाग टेढे चले लागे बीरे खान ॥
भाउ भगति सिउ काजु न कछूऐ मेरो कामु दीवान ॥१॥
रामु बिसारिओ है अभिमानि ॥
कनिक कामनी महा सुंदरी पेखि पेखि सचु मानि ॥१॥ रहाउ ॥
लालच झूठ बिकार महा मद इह बिधि अउध बिहानि ॥
कहि कबीर अंत की बेर आइ लागो कालु निदानि ॥२॥५॥1124॥
87. चारि दिन अपनी नउबति चले बजाइ
चारि दिन अपनी नउबति चले बजाइ ॥
इतनकु खटीआ गठीआ मटीआ संगि न कछु लै जाइ ॥१॥ रहाउ ॥
दिहरी बैठी मिहरी रोवै दुआरै लउ संगि माइ ॥
मरहट लगि सभु लोगु कुट्मबु मिलि हंसु इकेला जाइ ॥१॥
वै सुत वै बित वै पुर पाटन बहुरि न देखै आइ ॥
कहतु कबीरु रामु की न सिमरहु जनमु अकारथु जाइ ॥२॥६॥1124॥
88. नांगे आवनु नांगे जाना
नांगे आवनु नांगे जाना ॥
कोइ न रहिहै राजा राना ॥१॥
रामु राजा नउ निधि मेरै ॥
स्मपै हेतु कलतु धनु तेरै ॥१॥ रहाउ ॥
आवत संग न जात संगाती ॥
कहा भइओ दरि बांधे हाथी ॥२॥
लंका गढु सोने का भइआ ॥
मूरखु रावनु किआ ले गइआ ॥३॥
कहि कबीर किछु गुनु बीचारि ॥
चले जुआरी दुइ हथ झारि ॥४॥२॥1157॥
89. मैला ब्रहमा मैला इंदु
मैला ब्रहमा मैला इंदु ॥
रवि मैला मैला है चंदु ॥१॥
मैला मलता इहु संसारु ॥
इकु हरि निरमलु जा का अंतु न पारु ॥१॥ रहाउ॥
मैले ब्रहमंडाइ कै ईस ॥
मैले निसि बासुर दिन तीस ॥२॥
मैला मोती मैला हीरु ॥
मैला पउनु पावकु अरु नीरु ॥३॥
मैले सिव संकरा महेस ॥
मैले सिध साधिक अरु भेख ॥४॥
मैले जोगी जंगम जटा सहेति ॥
मैली काइआ हंस समेति ॥५॥
कहि कबीर ते जन परवान ॥
निरमल ते जो रामहि जान ॥६॥३॥1158॥
90. मनु करि मका किबला करि देही
मनु करि मका किबला करि देही ॥
बोलनहारु परम गुरु एही ॥१॥
कहु रे मुलां बांग निवाज ॥
एक मसीति दसै दरवाज ॥१॥ रहाउ ॥
मिसिमिलि तामसु भरमु कदूरी ॥
भाखि ले पंचै होइ सबूरी ॥२॥
हिंदू तुरक का साहिबु एक ॥
कह करै मुलां कह करै सेख ॥३॥
कहि कबीर हउ भइआ दिवाना ॥
मुसि मुसि मनूआ सहजि समाना ॥४॥४॥1158॥
91. गंगा कै संगि सलिता बिगरी
गंगा कै संगि सलिता बिगरी ॥
सो सलिता गंगा होइ निबरी ॥१॥
बिगरिओ कबीरा राम दुहाई ॥
साचु भइओ अन कतहि न जाई ॥१॥ रहाउ ॥
चंदन कै संगि तरवरु बिगरिओ ॥
सो तरवरु चंदनु होइ निबरिओ ॥२॥
पारस कै संगि तांबा बिगरिओ ॥
सो तांबा कंचनु होइ निबरिओ ॥३॥
संतन संगि कबीरा बिगरिओ ॥
सो कबीरु रामै होइ निबरिओ ॥४॥५॥1158॥
92. माथे तिलकु हथि माला बानां
माथे तिलकु हथि माला बानां ॥
लोगन रामु खिलउना जानां ॥१॥
जउ हउ बउरा तउ राम तोरा ॥
लोगु मरमु कह जानै मोरा ॥१॥ रहाउ ॥
तोरउ न पाती पूजउ न देवा ॥
राम भगति बिनु निहफल सेवा ॥२॥
सतिगुरु पूजउ सदा सदा मनावउ ॥
ऐसी सेव दरगह सुखु पावउ ॥३॥
लोगु कहै कबीरु बउराना ॥
कबीर का मरमु राम पहिचानां ॥४॥६॥1158॥
93. उलटि जाति कुल दोऊ बिसारी
उलटि जाति कुल दोऊ बिसारी ॥
सुंन सहज महि बुनत हमारी ॥१॥
हमरा झगरा रहा न कोऊ ॥
पंडित मुलां छाडे दोऊ ॥१॥ रहाउ ॥
बुनि बुनि आप आपु पहिरावउ ॥
जह नही आपु तहा होइ गावउ ॥२॥
पंडित मुलां जो लिखि दीआ ॥
छाडि चले हम कछू न लीआ ॥३॥
रिदै इखलासु निरखि ले मीरा ॥
आपु खोजि खोजि मिले कबीरा ॥४॥७॥1158॥
94. निरधन आदरु कोई न देइ
निरधन आदरु कोई न देइ ॥
लाख जतन करै ओहु चिति न धरेइ ॥१॥ रहाउ ॥
जउ निरधनु सरधन कै जाइ ॥
आगे बैठा पीठि फिराइ ॥१॥
जउ सरधनु निरधन कै जाइ ॥
दीआ आदरु लीआ बुलाइ ॥२॥
निरधनु सरधनु दोनउ भाई ॥
प्रभ की कला न मेटी जाई ॥३॥
कहि कबीर निरधनु है सोई ॥
जा के हिरदै नामु न होई ॥४॥८॥1159॥
95. सो मुलां जो मन सिउ लरै
सो मुलां जो मन सिउ लरै ॥
गुर उपदेसि काल सिउ जुरै ॥
काल पुरख का मरदै मानु ॥
तिसु मुला कउ सदा सलामु ॥१॥
है हजूरि कत दूरि बतावहु ॥
दुंदर बाधहु सुंदर पावहु ॥१॥ रहाउ ॥
काजी सो जु काइआ बीचारै ॥
काइआ की अगनि ब्रहमु परजारै ॥
सुपनै बिंदु न देई झरना ॥
तिसु काजी कउ जरा न मरना ॥२॥
सो सुरतानु जु दुइ सर तानै ॥
बाहरि जाता भीतरि आनै ॥
गगन मंडल महि लसकरु करै ॥
सो सुरतानु छत्रु सिरि धरै ॥३॥
जोगी गोरखु गोरखु करै ॥
हिंदू राम नामु उचरै ॥
मुसलमान का एकु खुदाइ ॥
कबीर का सुआमी रहिआ समाइ ॥४॥३॥११॥1159॥
96. जब लगु मेरी मेरी करै
जब लगु मेरी मेरी करै ॥
तब लगु काजु एकु नही सरै ॥
जब मेरी मेरी मिटि जाइ ॥
तब प्रभ काजु सवारहि आइ ॥१॥
ऐसा गिआनु बिचारु मना ॥
हरि की न सिमरहु दुख भंजना ॥१॥ रहाउ ॥
जब लगु सिंघु रहै बन माहि ॥
तब लगु बनु फूलै ही नाहि ॥
जब ही सिआरु सिंघ कउ खाइ ॥
फूलि रही सगली बनराइ ॥२॥
जीतो बूडै हारो तिरै ॥
गुर परसादी पारि उतरै ॥
दासु कबीरु कहै समझाइ ॥
केवल राम रहहु लिव लाइ ॥३॥६॥१४॥1160॥
97. सभु कोई चलन कहत है ऊहां
सभु कोई चलन कहत है ऊहां ॥
ना जानउ बैकुंठु है कहां ॥१॥ रहाउ ॥
आप आप का मरमु न जानां ॥
बातन ही बैकुंठु बखानां ॥१॥
जब लगु मन बैकुंठ की आस ॥
तब लगु नाही चरन निवास ॥२॥
खाई कोटु न परल पगारा ॥
ना जानउ बैकुंठ दुआरा ॥३॥
कहि कमीर अब कहीऐ काहि ॥
साधसंगति बैकुंठै आहि ॥४॥८॥१६॥1161॥
98. गंग गुसाइनि गहिर ग्मभीर
गंग गुसाइनि गहिर ग्मभीर ॥
जंजीर बांधि करि खरे कबीर ॥१॥
मनु न डिगै तनु काहे कउ डराइ ॥
चरन कमल चितु रहिओ समाइ ॥ रहाउ ॥
गंगा की लहरि मेरी टुटी जंजीर ॥
म्रिगछाला पर बैठे कबीर ॥२॥
कहि क्मबीर कोऊ संग न साथ ॥
जल थल राखन है रघुनाथ ॥३॥१०॥१८॥1162॥
99. मउली धरती मउलिआ अकासु
मउली धरती मउलिआ अकासु ॥
घटि घटि मउलिआ आतम प्रगासु ॥१॥
राजा रामु मउलिआ अनत भाइ ॥
जह देखउ तह रहिआ समाइ ॥१॥ रहाउ ॥
दुतीआ मउले चारि बेद ॥
सिम्रिति मउली सिउ कतेब ॥२॥
संकरु मउलिओ जोग धिआन ॥
कबीर को सुआमी सभ समान ॥३॥१॥1193॥
100. पंडित जन माते पड़्हि पुरान
पंडित जन माते पड़्हि पुरान ॥
जोगी माते जोग धिआन ॥
संनिआसी माते अहमेव ॥
तपसी माते तप कै भेव ॥१॥
सभ मद माते कोऊ न जाग ॥
संग ही चोर घरु मुसन लाग ॥१॥ रहाउ ॥
जागै सुकदेउ अरु अकूरु ॥
हणवंतु जागै धरि लंकूरु ॥
संकरु जागै चरन सेव ॥
कलि जागे नामा जैदेव ॥२॥
जागत सोवत बहु प्रकार ॥
गुरमुखि जागै सोई सारु ॥
इसु देही के अधिक काम ॥
कहि कबीर भजि राम नाम ॥३॥२॥1193॥
( Bhakt kabir ji ke shabad 81 se 100 tak )
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