21. सुरग बासु न बाछीऐ डरीऐ न नरकि निवासु
सुरग बासु न बाछीऐ डरीऐ न नरकि निवासु ॥
होना है सो होई है मनहि न कीजै आस ॥१॥
रमईआ गुन गाईऐ ॥
जा ते पाईऐ परम निधानु ॥१॥ रहाउ ॥
किआ जपु किआ तपु संजमो किआ बरतु किआ इसनानु ॥
जब लगु जुगति न जानीऐ भाउ भगति भगवान ॥२॥
स्मपै देखि न हरखीऐ बिपति देखि न रोइ ॥
जिउ स्मपै तिउ बिपति है बिध ने रचिआ सो होइ ॥३॥
कहि कबीर अब जानिआ संतन रिदै मझारि ॥
सेवक सो सेवा भले जिह घट बसै मुरारि ॥४॥१॥१२॥६३॥337॥
22. रे मन तेरो कोइ नही खिंचि लेइ जिनि भारु
रे मन तेरो कोइ नही खिंचि लेइ जिनि भारु ॥
बिरख बसेरो पंखि को तैसो इहु संसारु ॥१॥
राम रसु पीआ रे ॥
जिह रस बिसरि गए रस अउर ॥१॥ रहाउ ॥
अउर मुए किआ रोईऐ जउ आपा थिरु न रहाइ ॥
जो उपजै सो बिनसि है दुखु करि रोवै बलाइ ॥२॥
जह की उपजी तह रची पीवत मरदन लाग ॥
कहि कबीर चिति चेतिआ राम सिमरि बैराग ॥३॥२॥१३॥६४॥337॥
23. मन रे छाडहु भरमु प्रगट होइ नाचहु इआ माइआ के डांडे
मन रे छाडहु भरमु प्रगट होइ नाचहु इआ माइआ के डांडे ॥
सूरु कि सनमुख रन ते डरपै सती कि सांचै भांडे ॥१॥
डगमग छाडि रे मन बउरा ॥
अब तउ जरे मरे सिधि पाईऐ लीनो हाथि संधउरा ॥१॥ रहाउ ॥
काम क्रोध माइआ के लीने इआ बिधि जगतु बिगूता ॥
कहि कबीर राजा राम न छोडउ सगल ऊच ते ऊचा ॥२॥२॥१७॥६८॥338॥
24. लख चउरासीह जीअ जोनि महि भ्रमत नंदु बहु थाको रे
लख चउरासीह जीअ जोनि महि भ्रमत नंदु बहु थाको रे ॥
भगति हेति अवतारु लीओ है भागु बडो बपुरा को रे ॥१॥
तुम्ह जु कहत हउ नंद को नंदनु नंद सु नंदनु का को रे ॥
धरनि अकासु दसो दिस नाही तब इहु नंदु कहा थो रे ॥१॥ रहाउ ॥
संकटि नही परै जोनि नही आवै नामु निरंजन जा को रे ॥
कबीर को सुआमी ऐसो ठाकुरु जा कै माई न बापो रे ॥२॥१९॥७०॥338॥
25. निंदउ निंदउ मो कउ लोगु निंदउ
निंदउ निंदउ मो कउ लोगु निंदउ ॥
निंदा जन कउ खरी पिआरी ॥
निंदा बापु निंदा महतारी ॥१॥ रहाउ ॥
निंदा होइ त बैकुंठि जाईऐ ॥
नामु पदारथु मनहि बसाईऐ ॥
रिदै सुध जउ निंदा होइ ॥
हमरे कपरे निंदकु धोइ ॥१॥
निंदा करै सु हमरा मीतु ॥
निंदक माहि हमारा चीतु ॥
निंदकु सो जो निंदा होरै ॥
हमरा जीवनु निंदकु लोरै ॥२॥
निंदा हमरी प्रेम पिआरु ॥
निंदा हमरा करै उधारु ॥
जन कबीर कउ निंदा सारु ॥
निंदकु डूबा हम उतरे पारि ॥३॥२०॥७१॥339॥
27. हिंदू तुरक कहा ते आए किनि एह राह चलाई
हिंदू तुरक कहा ते आए किनि एह राह चलाई ॥
दिल महि सोचि बिचारि कवादे भिसत दोजक किनि पाई ॥१॥
काजी तै कवन कतेब बखानी ॥
पड़्हत गुनत ऐसे सभ मारे किनहूं खबरि न जानी ॥१॥ रहाउ ॥
सकति सनेहु करि सुंनति करीऐ मै न बदउगा भाई ॥
जउ रे खुदाइ मोहि तुरकु करैगा आपन ही कटि जाई ॥२॥
सुंनति कीए तुरकु जे होइगा अउरत का किआ करीऐ ॥
अरध सरीरी नारि न छोडै ता ते हिंदू ही रहीऐ ॥३॥
छाडि कतेब रामु भजु बउरे जुलम करत है भारी ॥
कबीरै पकरी टेक राम की तुरक रहे पचिहारी ॥४॥८॥477॥
28. जब लगु तेलु दीवे मुखि बाती तब सूझै सभु कोई ॥
जब लगु तेलु दीवे मुखि बाती तब सूझै सभु कोई ॥
तेल जले बाती ठहरानी सूंना मंदरु होई ॥१॥
रे बउरे तुहि घरी न राखै कोई ॥
तूं राम नामु जपि सोई ॥१॥ रहाउ ॥
का की मात पिता कहु का को कवन पुरख की जोई ॥
घट फूटे कोऊ बात न पूछै काढहु काढहु होई ॥२॥
देहुरी बैठी माता रोवै खटीआ ले गए भाई ॥
लट छिटकाए तिरीआ रोवै हंसु इकेला जाई ॥३॥
कहत कबीर सुनहु रे संतहु भै सागर कै ताई ॥
इसु बंदे सिरि जुलमु होत है जमु नही हटै गुसाई ॥४॥९॥478॥
29. सुतु अपराध करत है जेते
सुतु अपराध करत है जेते ॥
जननी चीति न राखसि तेते ॥१॥
रामईआ हउ बारिकु तेरा ॥
काहे न खंडसि अवगनु मेरा ॥१॥ रहाउ ॥
जे अति क्रोप करे करि धाइआ ॥
ता भी चीति न राखसि माइआ ॥२॥
चिंत भवनि मनु परिओ हमारा ॥
नाम बिना कैसे उतरसि पारा ॥३॥
देहि बिमल मति सदा सरीरा ॥
सहजि सहजि गुन रवै कबीरा ॥४॥३॥१२॥478॥
30. हज हमारी गोमती तीर
हज हमारी गोमती तीर ॥
जहा बसहि पीत्मबर पीर ॥१॥
वाहु वाहु किआ खूबु गावता है ॥
हरि का नामु मेरै मनि भावता है ॥१॥ रहाउ ॥
नारद सारद करहि खवासी ॥
पासि बैठी बीबी कवला दासी ॥२॥
कंठे माला जिहवा रामु ॥
सहंस नामु लै लै करउ सलामु ॥३॥
कहत कबीर राम गुन गावउ ॥
हिंदू तुरक दोऊ समझावउ ॥४॥४॥१३॥478॥
31. पाती तोरै मालिनी पाती पाती जीउ
पाती तोरै मालिनी पाती पाती जीउ ॥
जिसु पाहन कउ पाती तोरै सो पाहन निरजीउ ॥१॥
भूली मालनी है एउ ॥
सतिगुरु जागता है देउ ॥१॥ रहाउ ॥
ब्रहमु पाती बिसनु डारी फूल संकरदेउ ॥
तीनि देव प्रतखि तोरहि करहि किस की सेउ ॥२॥
पाखान गढि कै मूरति कीन्ही दे कै छाती पाउ ॥
जे एह मूरति साची है तउ गड़्हणहारे खाउ ॥३॥
भातु पहिति अरु लापसी करकरा कासारु ॥
भोगनहारे भोगिआ इसु मूरति के मुख छारु ॥४॥
मालिनि भूली जगु भुलाना हम भुलाने नाहि ॥
कहु कबीर हम राम राखे क्रिपा करि हरि राइ ॥५॥१॥१४॥479॥
32. बारह बरस बालपन बीते बीस बरस कछु तपु न कीओ
बारह बरस बालपन बीते बीस बरस कछु तपु न कीओ ॥
तीस बरस कछु देव न पूजा फिरि पछुताना बिरधि भइओ ॥१॥
मेरी मेरी करते जनमु गइओ ॥
साइरु सोखि भुजं बलइओ ॥१॥ रहाउ ॥
सूके सरवरि पालि बंधावै लूणै खेति हथ वारि करै ॥
आइओ चोरु तुरंतह ले गइओ मेरी राखत मुगधु फिरै ॥२॥
चरन सीसु कर क्मपन लागे नैनी नीरु असार बहै ॥
जिहवा बचनु सुधु नही निकसै तब रे धरम की आस करै ॥३॥
हरि जीउ क्रिपा करै लिव लावै लाहा हरि हरि नामु लीओ ॥
गुर परसादी हरि धनु पाइओ अंते चलदिआ नालि चलिओ ॥४॥
कहत कबीर सुनहु रे संतहु अनु धनु कछूऐ लै न गइओ ॥
आई तलब गोपाल राइ की माइआ मंदर छोडि चलिओ ॥५॥२॥१५॥479॥
33. काहू दीन्हे पाट पट्मबर काहू पलघ निवारा
काहू दीन्हे पाट पट्मबर काहू पलघ निवारा ॥
काहू गरी गोदरी नाही काहू खान परारा ॥१॥
अहिरख वादु न कीजै रे मन ॥
सुक्रितु करि करि लीजै रे मन ॥१॥ रहाउ ॥
कुम्हारै एक जु माटी गूंधी बहु बिधि बानी लाई ॥
काहू महि मोती मुकताहल काहू बिआधि लगाई ॥२॥
सूमहि धनु राखन कउ दीआ मुगधु कहै धनु मेरा ॥
जम का डंडु मूंड महि लागै खिन महि करै निबेरा ॥३॥
हरि जनु ऊतमु भगतु सदावै आगिआ मनि सुखु पाई ॥
जो तिसु भावै सति करि मानै भाणा मंनि वसाई ॥४॥
कहै कबीरु सुनहु रे संतहु मेरी मेरी झूठी ॥
चिरगट फारि चटारा लै गइओ तरी तागरी छूटी ॥५॥३॥१६॥479॥
34. हम मसकीन खुदाई बंदे तुम राजसु मनि भावै
हम मसकीन खुदाई बंदे तुम राजसु मनि भावै ॥
अलह अवलि दीन को साहिबु जोरु नही फुरमावै ॥१॥
काजी बोलिआ बनि नही आवै ॥१॥ रहाउ ॥
रोजा धरै निवाज गुजारै कलमा भिसति न होई ॥
सतरि काबा घट ही भीतरि जे करि जानै कोई ॥२॥
निवाज सोई जो निआउ बिचारै कलमा अकलहि जानै ॥
पाचहु मुसि मुसला बिछावै तब तउ दीनु पछानै ॥३॥
खसमु पछानि तरस करि जीअ महि मारि मणी करि फीकी ॥
आपु जनाइ अवर कउ जानै तब होइ भिसत सरीकी ॥४॥
माटी एक भेख धरि नाना ता महि ब्रहमु पछाना ॥
कहै कबीरा भिसत छोडि करि दोजक सिउ मनु माना ॥५॥४॥१७॥480॥
35. गगन नगरि इक बूंद न बरखै नादु कहा जु समाना
गगन नगरि इक बूंद न बरखै नादु कहा जु समाना ॥
पारब्रहम परमेसुर माधो परम हंसु ले सिधाना ॥१॥
बाबा बोलते ते कहा गए देही के संगि रहते ॥
सुरति माहि जो निरते करते कथा बारता कहते ॥१॥ रहाउ ॥
बजावनहारो कहा गइओ जिनि इहु मंदरु कीन्हा ॥
साखी सबदु सुरति नही उपजै खिंचि तेजु सभु लीन्हा ॥२॥
स्रवनन बिकल भए संगि तेरे इंद्री का बलु थाका ॥
चरन रहे कर ढरकि परे है मुखहु न निकसै बाता ॥३॥
थाके पंच दूत सभ तसकर आप आपणै भ्रमते ॥
थाका मनु कुंचर उरु थाका तेजु सूतु धरि रमते ॥४॥
मिरतक भए दसै बंद छूटे मित्र भाई सभ छोरे ॥
कहत कबीरा जो हरि धिआवै जीवत बंधन तोरे ॥५॥५॥१८॥480॥
36. सरपनी ते ऊपरि नही बलीआ
सरपनी ते ऊपरि नही बलीआ ॥
जिनि ब्रहमा बिसनु महादेउ छलीआ ॥१॥
मारु मारु स्रपनी निरमल जलि पैठी ॥
जिनि त्रिभवणु डसीअले गुर प्रसादि डीठी ॥१॥ रहाउ ॥
स्रपनी स्रपनी किआ कहहु भाई ॥
जिनि साचु पछानिआ तिनि स्रपनी खाई ॥२॥
स्रपनी ते आन छूछ नही अवरा ॥
स्रपनी जीती कहा करै जमरा ॥३॥
इह स्रपनी ता की कीती होई ॥
बलु अबलु किआ इस ते होई ॥४॥
इह बसती ता बसत सरीरा ॥
गुर प्रसादि सहजि तरे कबीरा ॥५॥६॥१९॥480॥
37. कहा सुआन कउ सिम्रिति सुनाए
कहा सुआन कउ सिम्रिति सुनाए ॥
कहा साकत पहि हरि गुन गाए ॥१॥
राम राम राम रमे रमि रहीऐ ॥
साकत सिउ भूलि नही कहीऐ ॥१॥ रहाउ ॥
कऊआ कहा कपूर चराए ॥
कह बिसीअर कउ दूधु पीआए ॥२॥
सतसंगति मिलि बिबेक बुधि होई ॥
पारसु परसि लोहा कंचनु सोई ॥३॥
साकतु सुआनु सभु करे कराइआ ॥
जो धुरि लिखिआ सु करम कमाइआ ॥४॥
अम्रितु लै लै नीमु सिंचाई ॥
कहत कबीर उआ को सहजु न जाई ॥५॥७॥२०॥481॥
38. लंका सा कोटु समुंद सी खाई
लंका सा कोटु समुंद सी खाई ॥
तिह रावन घर खबरि न पाई ॥१॥
किआ मागउ किछु थिरु न रहाई ॥
देखत नैन चलिओ जगु जाई ॥१॥ रहाउ ॥
इकु लखु पूत सवा लखु नाती ॥
तिह रावन घर दीआ न बाती ॥२॥
चंदु सूरजु जा के तपत रसोई ॥
बैसंतरु जा के कपरे धोई ॥३॥
गुरमति रामै नामि बसाई ॥
असथिरु रहै न कतहूं जाई ॥४॥
कहत कबीर सुनहु रे लोई ॥
राम नाम बिनु मुकति न होई ॥५॥८॥२१॥481॥
39. हम घरि सूतु तनहि नित ताना कंठि जनेऊ तुमारे
हम घरि सूतु तनहि नित ताना कंठि जनेऊ तुमारे ॥
तुम्ह तउ बेद पड़हु गाइत्री गोबिंदु रिदै हमारे ॥१॥
मेरी जिहबा बिसनु नैन नाराइन हिरदै बसहि गोबिंदा ॥
जम दुआर जब पूछसि बवरे तब किआ कहसि मुकंदा ॥१॥ रहाउ ॥
हम गोरू तुम गुआर गुसाई जनम जनम रखवारे ॥
कबहूं न पारि उतारि चराइहु कैसे खसम हमारे ॥२॥
तूं बाम्हनु मै कासीक जुलहा बूझहु मोर गिआना ॥
तुम्ह तउ जाचे भूपति राजे हरि सउ मोर धिआना ॥३॥४॥२६॥482॥
40. रोजा धरै मनावै अलहु सुआदति जीअ संघारै
रोजा धरै मनावै अलहु सुआदति जीअ संघारै ॥
आपा देखि अवर नही देखै काहे कउ झख मारै ॥१॥
काजी साहिबु एकु तोही महि तेरा सोचि बिचारि न देखै ॥
खबरि न करहि दीन के बउरे ता ते जनमु अलेखै ॥१॥ रहाउ ॥
साचु कतेब बखानै अलहु नारि पुरखु नही कोई ॥
पढे गुने नाही कछु बउरे जउ दिल महि खबरि न होई ॥२॥
अलहु गैबु सगल घट भीतरि हिरदै लेहु बिचारी ॥
हिंदू तुरक दुहूं महि एकै कहै कबीर पुकारी ॥३॥७॥२९॥483॥
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