41. करवतु भला न करवट तेरी
करवतु भला न करवट तेरी ॥
लागु गले सुनु बिनती मेरी ॥१॥
हउ वारी मुखु फेरि पिआरे ॥
करवटु दे मो कउ काहे कउ मारे ॥१॥ रहाउ ॥
जउ तनु चीरहि अंगु न मोरउ ॥
पिंडु परै तउ प्रीति न तोरउ ॥२॥
हम तुम बीचु भइओ नही कोई ॥
तुमहि सु कंत नारि हम सोई ॥३॥
कहतु कबीरु सुनहु रे लोई ॥
अब तुमरी परतीति न होई ॥४॥२॥३५॥484॥
42. कोरी को काहू मरमु न जानां
कोरी को काहू मरमु न जानां ॥
सभु जगु आनि तनाइओ तानां ॥१॥ रहाउ ॥
जब तुम सुनि ले बेद पुरानां ॥
तब हम इतनकु पसरिओ तानां ॥१॥
धरनि अकास की करगह बनाई ॥
चंदु सूरजु दुइ साथ चलाई ॥२॥
पाई जोरि बात इक कीनी तह तांती मनु मानां ॥
जोलाहे घरु अपना चीन्हां घट ही रामु पछानां ॥३॥
कहतु कबीरु कारगह तोरी ॥
सूतै सूत मिलाए कोरी ॥४॥३॥३६॥484॥
43. अंतरि मैलु जे तीरथ नावै तिसु बैकुंठ न जानां
अंतरि मैलु जे तीरथ नावै तिसु बैकुंठ न जानां ॥
लोक पतीणे कछू न होवै नाही रामु अयाना ॥१॥
पूजहु रामु एकु ही देवा ॥
साचा नावणु गुर की सेवा ॥१॥ रहाउ ॥
जल कै मजनि जे गति होवै नित नित मेंडुक नावहि ॥
जैसे मेंडुक तैसे ओइ नर फिरि फिरि जोनी आवहि ॥२॥
मनहु कठोरु मरै बानारसि नरकु न बांचिआ जाई ॥
हरि का संतु मरै हाड़्मबै त सगली सैन तराई ॥३॥
दिनसु न रैनि बेदु नही सासत्र तहा बसै निरंकारा ॥
कहि कबीर नर तिसहि धिआवहु बावरिआ संसारा ॥४॥४॥३७॥484॥
44. चारि पाव दुइ सिंग गुंग मुख तब कैसे गुन गईहै
चारि पाव दुइ सिंग गुंग मुख तब कैसे गुन गईहै ॥
ऊठत बैठत ठेगा परिहै तब कत मूड लुकईहै ॥१॥
हरि बिनु बैल बिराने हुईहै ॥
फाटे नाकन टूटे काधन कोदउ को भुसु खईहै ॥१॥ रहाउ ॥
सारो दिनु डोलत बन महीआ अजहु न पेट अघईहै ॥
जन भगतन को कहो न मानो कीओ अपनो पईहै ॥२॥
दुख सुख करत महा भ्रमि बूडो अनिक जोनि भरमईहै ॥
रतन जनमु खोइओ प्रभु बिसरिओ इहु अउसरु कत पईहै ॥३॥
भ्रमत फिरत तेलक के कपि जिउ गति बिनु रैनि बिहईहै ॥
कहत कबीर राम नाम बिनु मूंड धुने पछुतईहै ॥४॥१॥524॥
45. मुसि मुसि रोवै कबीर की माई
मुसि मुसि रोवै कबीर की माई ॥
ए बारिक कैसे जीवहि रघुराई ॥१॥
तनना बुनना सभु तजिओ है कबीर ॥
हरि का नामु लिखि लीओ सरीर ॥१॥ रहाउ ॥
जब लगु तागा बाहउ बेही ॥
तब लगु बिसरै रामु सनेही ॥२॥
ओछी मति मेरी जाति जुलाहा ॥
हरि का नामु लहिओ मै लाहा ॥३॥
कहत कबीर सुनहु मेरी माई ॥
हमरा इन का दाता एकु रघुराई ॥४॥२॥524॥
46. बुत पूजि पूजि हिंदू मूए तुरक मूए सिरु नाई
बुत पूजि पूजि हिंदू मूए तुरक मूए सिरु नाई ॥
ओइ ले जारे ओइ ले गाडे तेरी गति दुहू न पाई ॥१॥
मन रे संसारु अंध गहेरा ॥
चहु दिस पसरिओ है जम जेवरा ॥१॥ रहाउ ॥
कबित पड़े पड़ि कबिता मूए कपड़ केदारै जाई ॥
जटा धारि धारि जोगी मूए तेरी गति इनहि न पाई ॥२॥
दरबु संचि संचि राजे मूए गडि ले कंचन भारी ॥
बेद पड़े पड़ि पंडित मूए रूपु देखि देखि नारी ॥३॥
राम नाम बिनु सभै बिगूते देखहु निरखि सरीरा ॥
हरि के नाम बिनु किनि गति पाई कहि उपदेसु कबीरा ॥४॥१॥654॥
47. जब जरीऐ तब होइ भसम तनु रहै किरम दल खाई
जब जरीऐ तब होइ भसम तनु रहै किरम दल खाई ॥
काची गागरि नीरु परतु है इआ तन की इहै बडाई ॥१॥
काहे भईआ फिरतौ फूलिआ फूलिआ ॥
जब दस मास उरध मुख रहता सो दिनु कैसे भूलिआ ॥१॥ रहाउ ॥
जिउ मधु माखी तिउ सठोरि रसु जोरि जोरि धनु कीआ ॥
मरती बार लेहु लेहु करीऐ भूतु रहन किउ दीआ ॥२॥
देहुरी लउ बरी नारि संगि भई आगै सजन सुहेला ॥
मरघट लउ सभु लोगु कुट्मबु भइओ आगै हंसु अकेला ॥३॥
कहतु कबीर सुनहु रे प्रानी परे काल ग्रस कूआ ॥
झूठी माइआ आपु बंधाइआ जिउ नलनी भ्रमि सूआ ॥४॥२॥654॥
48. बेद पुरान सभै मत सुनि कै करी करम की आसा
बेद पुरान सभै मत सुनि कै करी करम की आसा ॥
काल ग्रसत सभ लोग सिआने उठि पंडित पै चले निरासा ॥१॥
मन रे सरिओ न एकै काजा ॥
भजिओ न रघुपति राजा ॥१॥ रहाउ ॥
बन खंड जाइ जोगु तपु कीनो कंद मूलु चुनि खाइआ ॥
नादी बेदी सबदी मोनी जम के पटै लिखाइआ ॥२॥
भगति नारदी रिदै न आई काछि कूछि तनु दीना ॥
राग रागनी डि्मभ होइ बैठा उनि हरि पहि किआ लीना ॥३॥
परिओ कालु सभै जग ऊपर माहि लिखे भ्रम गिआनी ॥
कहु कबीर जन भए खालसे प्रेम भगति जिह जानी ॥४॥३॥654॥
49. दुइ दुइ लोचन पेखा
दुइ दुइ लोचन पेखा ॥
हउ हरि बिनु अउरु न देखा ॥
नैन रहे रंगु लाई ॥
अब बे गल कहनु न जाई ॥१॥
हमरा भरमु गइआ भउ भागा ॥
जब राम नाम चितु लागा ॥१॥ रहाउ ॥
बाजीगर डंक बजाई ॥
सभ खलक तमासे आई ॥
बाजीगर स्वांगु सकेला ॥
अपने रंग रवै अकेला ॥२॥
कथनी कहि भरमु न जाई ॥
सभ कथि कथि रही लुकाई ॥
जा कउ गुरमुखि आपि बुझाई ॥
ता के हिरदै रहिआ समाई ॥३॥
गुर किंचत किरपा कीनी ॥
सभु तनु मनु देह हरि लीनी ॥
कहि कबीर रंगि राता ॥
मिलिओ जगजीवन दाता ॥४॥४॥655॥
50. जा के निगम दूध के ठाटा
जा के निगम दूध के ठाटा ॥
समुंदु बिलोवन कउ माटा ॥
ता की होहु बिलोवनहारी ॥
किउ मेटै गो छाछि तुहारी ॥१॥
चेरी तू रामु न करसि भतारा ॥
जगजीवन प्रान अधारा ॥१॥ रहाउ ॥
तेरे गलहि तउकु पग बेरी ॥
तू घर घर रमईऐ फेरी ॥
तू अजहु न चेतसि चेरी ॥
तू जमि बपुरी है हेरी ॥२॥
प्रभ करन करावनहारी ॥
किआ चेरी हाथ बिचारी ॥
सोई सोई जागी ॥
जितु लाई तितु लागी ॥३॥
चेरी तै सुमति कहां ते पाई ॥
जा ते भ्रम की लीक मिटाई ॥
सु रसु कबीरै जानिआ ॥
मेरो गुर प्रसादि मनु मानिआ ॥४॥५॥655॥
51. जिह बाझु न जीआ जाई
जिह बाझु न जीआ जाई ॥
जउ मिलै त घाल अघाई ॥
सद जीवनु भलो कहांही ॥
मूए बिनु जीवनु नाही ॥१॥
अब किआ कथीऐ गिआनु बीचारा ॥
निज निरखत गत बिउहारा ॥१॥ रहाउ ॥
घसि कुंकम चंदनु गारिआ ॥
बिनु नैनहु जगतु निहारिआ ॥
पूति पिता इकु जाइआ ॥
बिनु ठाहर नगरु बसाइआ ॥२॥
जाचक जन दाता पाइआ ॥
सो दीआ न जाई खाइआ ॥
छोडिआ जाइ न मूका ॥
अउरन पहि जाना चूका ॥३॥
जो जीवन मरना जानै ॥
सो पंच सैल सुख मानै ॥
कबीरै सो धनु पाइआ ॥
हरि भेटत आपु मिटाइआ ॥४॥६॥655॥
52. किआ पड़ीऐ किआ गुनीऐ
किआ पड़ीऐ किआ गुनीऐ ॥
किआ बेद पुरानां सुनीऐ ॥
पड़े सुने किआ होई ॥
जउ सहज न मिलिओ सोई ॥१॥
हरि का नामु न जपसि गवारा ॥
किआ सोचहि बारं बारा ॥१॥ रहाउ ॥
अंधिआरे दीपकु चहीऐ ॥ इक बसतु अगोचर लहीऐ ॥
बसतु अगोचर पाई ॥
घटि दीपकु रहिआ समाई ॥२॥
कहि कबीर अब जानिआ ॥
जब जानिआ तउ मनु मानिआ ॥
मन माने लोगु न पतीजै ॥
न पतीजै तउ किआ कीजै ॥३॥७॥655॥
53. ह्रिदै कपटु मुख गिआनी
ह्रिदै कपटु मुख गिआनी ॥
झूठे कहा बिलोवसि पानी ॥१॥
कांइआ मांजसि कउन गुनां ॥
जउ घट भीतरि है मलनां ॥१॥ रहाउ ॥
लउकी अठसठि तीरथ न्हाई ॥
कउरापनु तऊ न जाई ॥२॥
कहि कबीर बीचारी ॥
भव सागरु तारि मुरारी ॥३॥८॥656॥
54. बहु परपंच करि पर धनु लिआवै
बहु परपंच करि पर धनु लिआवै ॥
सुत दारा पहि आनि लुटावै ॥१॥
मन मेरे भूले कपटु न कीजै ॥
अंति निबेरा तेरे जीअ पहि लीजै ॥१॥ रहाउ ॥
छिनु छिनु तनु छीजै जरा जनावै ॥
तब तेरी ओक कोई पानीओ न पावै ॥२॥
कहतु कबीरु कोई नही तेरा ॥
हिरदै रामु की न जपहि सवेरा ॥३॥९॥656॥
55. संतहु मन पवनै सुखु बनिआ
संतहु मन पवनै सुखु बनिआ ॥
किछु जोगु परापति गनिआ ॥ रहाउ ॥
गुरि दिखलाई मोरी ॥
जितु मिरग पड़त है चोरी ॥
मूंदि लीए दरवाजे ॥
बाजीअले अनहद बाजे ॥१॥
कु्मभ कमलु जलि भरिआ ॥
जलु मेटिआ ऊभा करिआ ॥
कहु कबीर जन जानिआ ॥
जउ जानिआ तउ मनु मानिआ ॥२॥१०॥656॥
56. भूखे भगति न कीजै
भूखे भगति न कीजै ॥
यह माला अपनी लीजै ॥
हउ मांगउ संतन रेना ॥
मै नाही किसी का देना ॥१॥
माधो कैसी बनै तुम संगे ॥
आपि न देहु त लेवउ मंगे ॥ रहाउ ॥
दुइ सेर मांगउ चूना ॥
पाउ घीउ संगि लूना ॥
अध सेरु मांगउ दाले ॥
मो कउ दोनउ वखत जिवाले ॥२॥
खाट मांगउ चउपाई ॥
सिरहाना अवर तुलाई ॥
ऊपर कउ मांगउ खींधा ॥
तेरी भगति करै जनु थींधा ॥३॥
मै नाही कीता लबो ॥
इकु नाउ तेरा मै फबो ॥
कहि कबीर मनु मानिआ ॥
मनु मानिआ तउ हरि जानिआ ॥४॥११॥656॥
57. सनक सनंद महेस समानां
सनक सनंद महेस समानां ॥
सेखनागि तेरो मरमु न जानां ॥१॥
संतसंगति रामु रिदै बसाई ॥१॥ रहाउ ॥
हनूमान सरि गरुड़ समानां ॥
सुरपति नरपति नही गुन जानां ॥२॥
चारि बेद अरु सिम्रिति पुरानां ॥
कमलापति कवला नही जानां ॥३॥
कहि कबीर सो भरमै नाही ॥
पग लगि राम रहै सरनांही ॥४॥१॥691॥
58. दिन ते पहर पहर ते घरीआं आव घटै तनु छीजै
दिन ते पहर पहर ते घरीआं आव घटै तनु छीजै ॥
कालु अहेरी फिरै बधिक जिउ कहहु कवन बिधि कीजै ॥१॥
सो दिनु आवन लागा ॥
मात पिता भाई सुत बनिता कहहु कोऊ है का का ॥१॥ रहाउ ॥
जब लगु जोति काइआ महि बरतै आपा पसू न बूझै ॥
लालच करै जीवन पद कारन लोचन कछू न सूझै ॥२॥
कहत कबीर सुनहु रे प्रानी छोडहु मन के भरमा ॥
केवल नामु जपहु रे प्रानी परहु एक की सरनां ॥३॥२॥692॥
59. जो जनु भाउ भगति कछु जानै ता कउ अचरजु काहो
जो जनु भाउ भगति कछु जानै ता कउ अचरजु काहो ॥
जिउ जलु जल महि पैसि न निकसै तिउ ढुरि मिलिओ जुलाहो ॥१॥
हरि के लोगा मै तउ मति का भोरा ॥
जउ तनु कासी तजहि कबीरा रमईऐ कहा निहोरा ॥१॥ रहाउ ॥
कहतु कबीरु सुनहु रे लोई भरमि न भूलहु कोई ॥
किआ कासी किआ ऊखरु मगहरु रामु रिदै जउ होई ॥२॥३॥692॥
60. इंद्र लोक सिव लोकहि जैबो
इंद्र लोक सिव लोकहि जैबो ॥
ओछे तप करि बाहुरि ऐबो ॥१॥
किआ मांगउ किछु थिरु नाही ॥
राम नाम रखु मन माही ॥१॥ रहाउ ॥
सोभा राज बिभै बडिआई ॥
अंति न काहू संग सहाई ॥२॥
पुत्र कलत्र लछमी माइआ ॥
इन ते कहु कवनै सुखु पाइआ ॥३॥
कहत कबीर अवर नही कामा ॥
हमरै मन धन राम को नामा ॥४॥४॥692॥
( Bhakt kabir ji ke shabad ettalis se sath tak )
0 Comments: