मोरपंख, मुरली, पीताम्बर, विधि ने क्यों न बनाया !
मोरपंख बनती यदि मोहन करते आप शीश पर धारण
डोलूँ अधर लगी मुरली बन उसको नहीं सुहाया ||1
पीताम्बर बनकर यदि आती यों न बिलखते रात बिताती
भुजपाशों में बँध- बँध जाती करती उर पर छाया ||2
क्या फल मिला जन्म यह पाकर सजती कहीं आपके तन पर
रहती सँग सँग, नाथ निरंतर सार्थक होती काया ||3
हे रे श्याम मैंने नारी-तन क्यों पाया
मोरपंख, मुरली, पीताम्बर, विधि ने क्यों न बनाया!
लेखिका : मालिनी
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