सुंदर कथा-
जानें कौन से भक्तों से दूर रहते हैं ठाकुर जी और राधा रानी
व्रज में श्री राधा रानी जी एवं श्री कृष्ण साक्षात विराजमान रहते हैं। वहां जाने से निश्चित व्यक्ति के अनन्त जन्मों के पाप एवं समस्त पुण्य दोनों निशेष हो जाऐंगे। शेष रह जाएगा मात्र प्रेम। यदि आपको किशोरी जी अपने धाम वृन्दावन में बुला लें तो यह आपका सौभाग्य है। वृन्दावन धाम में निवास करके भजन का सच्चा आनंद केवल वही व्यक्ति ले पाता है, जो अपनी डोर श्री राधा रानी के हाथों में मजबूती से पकड़ा देता है। जो इस समर्पण में रती भर भी कंजूसी करता है, वह बाहर से भजन करता हुआ भीतर से संसार की भुल-भुलैयाओं में ही भटकता रहता है।
चालीस पचास साल पहले की बात है। एक व्यक्ति जो कहीं बाहर का रहने वाला था। वृन्दावन में रहकर वृन्दावनीय भावना से भजन करना चाहता था। उसने अपनी इच्छा एक व्रजवासी को बताई और पूछा,"इसके लिए मुझे क्या तैयारी करनी पड़ेगी।"
व्रजवासी ने कहा,"तैयारी क्या करनी है?"
व्यक्ति बोला,"वैसी तैयारी जैसी तीर्थ यात्रा करते समय करनी होती है।"
व्रजवासी ने कहा,"यहां रहना है भजन करना है तो वृन्दावन जू पर पूरा भरोसा लेकर आइए।"
व्यक्ति ने अपने संसारिक अनुभव के आधार पर पूछा," खाने-पीने, पहिनने-ओढ़ने आदि की व्यवस्था करके तो आना होगा।
व्रजवासी ने समझाया,"यों तो सब जगह श्री हरि का किया ही होता है। आदमी तो अंहकार वश व्यर्थ ही कर्तापन का बोझ अपने ऊपर लाद लेता है। किंतु यह वृन्दावन तो राधा रानी का निजधाम है, उनकी राजधानी है, जो वृन्दावन का अनन्याश्रित होकर यहां आता है। उसकी समस्त आवश्यकताओं को राधा रानी स्वयं पूरा करती हैं। आपको तो केवल इतना करना है कि संसार की तमाम वस्तुओं और व्यक्तियों पर टिकी अपनी आशा को समेटकर उसे श्री राधा रानी के चरणों में समर्पित कर देना है। विश्वास कर लेना है कि श्री राधा रानी के सिवाय मेरा संसार में कोई नहीं है। मैं उनका हूं और वो मेरी हैं।"
व्रजवासी की बात उस व्यक्ति को बड़ी अच्छी लगी। राधा रानी की कृपालुता और उदारता की महिमा सुनकर उसका दिल भर आया,पर विश्वास में थोड़ी कमी रह गई। उसने विचार किया व्रजवासी की बात कहीं ढपोल शंख का आश्वासन सिद्ध हुआ तो मैं बिना मौत मारा जाऊंगा। बिना परखे आगे कदम बढ़ाना बुद्धिमानी नहीं है। राधारानी की इस उदारता की परीक्षा तो करनी ही चाहिए।
वह अपना घर परिवार सब छोड़कर वृंन्दावन आ गया। किंतु एक सोने की अंगुठी उसने अपने पास छुपा कर रख ली। वह वृन्दावन आ कर यमुना पुलिन पर पड़ गया और श्री राधे राधे का जाप करने लगा। भूख-प्यास से व्याकुल होने पर इधर-उधर बाट देखने लगा राधा रानी अभी उसके लिए उसका मन-भावन भोजन लेकर आएंगी मगर तीन दिन तक वह इंतजार में बैठा रहा और भोजन आने की प्रतीक्षा करने लगा पर न तो राधा रानी स्वयं भोजन लेकर आई और न ही कोई व्यवस्था की।
अंत में अधीर होकर उसने निर्णय किया कि कोई राधारानी नहीं है, सब ढोंग है दिखावा है और वह जोर-जोर से चीखने लगा। पुलिन से उठकर वृन्दावन से बाहर जाने लगा। अचानक उसके कानों में आवाज आई," क्या कर रहे हो अपनी गांठ में सोने की अंगुठी को छुपाकर अपने विश्वास को खोटा तो खुद ने किया है और दोष दे रहा है राधा रानी को?"
व्यक्ति ने मुड़कर देखा तो एक सात-आठ साल की बालिका उसे लताड़ रही थी। उसने आगे कहा,"तू समझता है कि इतनी भीतर छिपाकर रखी है अंगुठी भला राधा रानी कैसे देख पाएंगी? पर राधारानी तो ह्रदय के कोने-कोने में छुपे भावों को देख लेती हैं। जो संसार को ह्रदय की गांठ में छिपाकर वृन्दावन में वास करने का स्वांग करते हैं। उनसे हमारे ठाकुर जी और राधा रानी बहुत-बहुत दूर रहते हैं। श्री राधे राधे
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