Shri Dham Barsana

Shri Dham Barsana

���� श्री धाम बरसाना ����

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��श्री धाम बरसाना की इष्ट श्री राधारानी के निज महल श्री जी मन्दिर जो ब्रह्मांचल पर्वत पर स्थित है । उस लाडलीलाल के निज महल में लाडलीलाल जू की विषेश आरती समय समय पर होती है ।

��लाडलीलाल जु की प्रतिदिन पाँच आरती होती है जिन्हें क्रम से आपको अवगत करा रहे हैं । और उन आरतियों को भी लिखकर आप तक पहुंचने का प्रयास कर रहे हैं जिससे आप अपने घरों पर भी हमारे लाडलीलाल की सेवा आरती कर सके ।

�� पाँच आरतियों के नाम  ��

��प्रथम- मगंला आरती

��द्वितीय- श्रृंगार आरती

��तृतीय- राजभोग आरती

��चतुर्थ- सन्ध्या आरती

��पंचम- शयन आरती

����    आरतियाॅ     ����

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��  मंगला आरती  ��

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सोबत राधे श्याम जगाई
सोबत राधे श्याम जगाई

उठ बैठी वृषभान दुलारी
मुख मीढत और लेत झमाई
सोबत राधे श्याम जगाई...

लटपट चरन धरत धरनी में
बइयाँ नै लट छिटकाई
सोबत राधे श्याम जगाई....

दो दातुन की रत जुन भेजी
ललिता जी झारी भर लाई
सोबत राधे श्याम जगाई...

नाहये दोहये सिंहासन बैठी
सेवा करत पुजारी राधेश्याम की
सोबत राधे श्याम जगाई....

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नोट- इस मंगला आरती के द्वारा व्रजवासी नित्यप्रति लाडली लाल निजी महल बरसाना धाम श्री जी मन्दिर में श्री लाडली लाल जी को प्रातः ब्रह्मबेला के समय पर ऊपर लिखे गए भजन से जगाया जाता है और व्रजवासियों द्वारा अपने अपने घरों पर भी लाडली लाल को इसी मंगला आरती द्वारा जगाया जाता है , इसके पश्चात व्रजवासियों के द्वारा जगाई हुई श्री लाडली लाल जु की युगल महामंत्र संकीर्त्तन के साथ भव्य मंगला आरती के दर्शन होते हैं ।

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��    श्रृंगार आरती भजन   ��

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��       अचमन          ��

अचमन कर लेओ राधे श्याम,
अचमन कर लेओ राधे श्याम।

काहे कौ लोटा काहे कौ पानी,
काहे कौ भर लाई जलनीरा ।।

सोने कौ लोटा यमुनाजल पानी,
गहवरकुण्ड कौ भर लाई जलनीरा।।

अचमन कर लेओ राधे श्याम. ..

��    श्रृंगार भोग     ��

कर अचमन सिंहासन बैठी,
चवर ढुरावै पुजारी तेरो राधे,
लेते आना साँवरिया बीरी पान की।।

कत्था चूना और सुपारी,
बीरी बनी हैं और गुरूग्यान, की, हाॅरे नागर पान की,
लेते आना साँवरिया बीरी पान की।।

वृन्दावन की कुन्ज गलिन में,
जोडी बनी है श्यामा श्याम की, हाॅरे नागर पान की,
लेते आना साँवरिया बीरी पान की।।

आओ नन्दलाल चौपड खेले,
बाजू लगऊ गुरू ग्यान की, हाॅरे नागर पान की,
लेते आना साँवरिया बीरी पान की।।

हारू तो प्रभु दासी तुम्हारी,
जींतू तो बेटी वृषभानु की, हाॅरे नागर पान की,
लेते आना साँवरिया बीरी पान की।।

बेटी तो जीती वृषभानु की,
हाॅरे राधे श्याम की,
तुमने तो मारी फुलभर छरिया
हमने तो मारी नैना बान की हाॅरे राधे श्याम की
लेते आना साँवरिया बीरी पान की।।

तुमने तो मोहन सब जग मोहो,
बेटी तो मोही वृषभानु की, हाॅरे राधे श्याम की,
लेते आना साँवरिया बीरी पान की।।

चन्द्र सखी भजवाल कृष्ण छवि, हरि के चरन चित लाल की, हाॅरे राधे श्याम की,
लेते आना साँवरिया बीरी पान की।।

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नोट- मंगला आरती के पश्चात श्री जी मन्दिर बरसाना में श्री लाडली लाल जु के निज महल में लाडलीलाल जु महाराज का पंचामृत के द्वारा अभिषेक कराके पूर्ण श्रृंगारित श्री लाडलीलाल जु के भव्य श्रृंगार आरती के दर्शन होते हैं । ऊपर लिखे गये भजन से युगल सरकार की व्रजवासियों के द्वारा स्तुति की जाती है । और अपने अपने घरों में भी इसी स्तुति द्वारा श्रृंगार आरती भजन अचमन कराते हैं ।

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श्री जी नित्यस्तुति मण्डल - बरसाना

��         युगल महामंत्र       ��

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राधे कृष्ण राधे कृष्ण कृष्ण कृष्ण राधे राधे
राधे श्याम राधे श्याम श्याम श्याम राधे राधे

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श्री जी नित्यस्तुति मण्डल - बरसाना

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��राज भोग आरती( मध्याह्न )��

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राधा माधव भोग लगाओ ।
राधा माधव भोग लगाओ ।।

जैसे साग विधुर घर खाये ।
वैसे नाथ मेरे घर पाओ ।।
राधा माधव भोग लगाओ....

जैसे करमा की खिचडी खाई ।
वैसे नाथ मेरे घर पाओ ।।
राधा माधव भोग लगाओ....

जैसे सुदामा के तन्दुल खाये ।
वैसे नाथ मेरे घर पाओ ।।
राधा माधव भोग लगाओ.....

जैसे भिलनी के बेर जो खाये ।
वैसे नाथ मेरे घर पापाओ ।।
राधा माधव भोग लगाओ.....

��यह भजन लाडलीलाल जू को प्रेम से भोजन पवाने के लिए राजभोग एवं श्रृंगार भोग पर व्रज गोपियों व व्रजवासियों के द्वारा उनके समक्ष उनके निज महल श्री जी मन्दिर में गाया जाता है । और व्रज गोपियों एवं व्रजवासी अपने घरों में भी अपने ठाकुर जी ( श्रीराधाकृष्ण ) को भोग लगाते समय नित्यप्रति इसी भजन को गाते हैं ।

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श्री जी नित्यस्तुति मण्डल - बरसाना

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��  सन्ध्या आरती   ��

��नोट- यह सन्ध्या आरती नित्यप्रति श्री जी मन्दिर बरसाना में मन्दिर के समय से आज तक होती आ रही है । इस स्तुति को नित्यप्रति व्रजवासियों द्वारा श्रीलाडली लाल के सामने करते आ रहे हैं । यह भक्तों के लिए दिव्य और प्रेमभक्ति प्रदान करने वाली है । और इस मायामय संसार से तारने के लिए अचूक साधन है इसमे शंका कदापि न करे ।

मुख्य राधा जी का मन्दिर श्री जी मन्दिर मे नित्यप्रति यह स्तुति होती आ रही है ।

��    सन्ध्या स्तुति    ��
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कस्तुरी तिलकं ललाट पटले वक्षस्थले कौस्तुभं

नासाग्रे वर मौक्तिकं कर तले वेणु करे कंकणम् ।

सर्वांगे हरिचन्दनम् सुललितं कण्ठे च मुक्तावलि

गोपस्त्री परिवेष्टितो विजयते गोपाल चूडामणिम् ।।

फुल्लेन्दीवर कान्ति मिन्दु वदनं वर्हावतं सप्रियम्

श्री वत्सांकमुदार कौस्तुभ धरं पीताम्बरं सुन्दरम् ।

गोपीनां नयनोत्पलार्चित तनुं गो गोप संघावृतं

गोविन्दं कलवेणु वादन परं दिव्यांग भूषं भजे ।।

हे राधे वृषभानु भूपतनये हे पूर्ण चन्द्रानने

हे कान्ते कमनीयकोकिलरवे वृन्दावनाधीश्वरी ।

हे मत्प्राणपरायणे च रसिके हे सर्वयुथेश्वरी

मत्स्वान्तोब्ज वरासने विशमुदा मां दिनमानन्दय ।।

त्वमेव माता च पिता त्वमेव
त्वमेव वन्धुश्च सखा त्वमेव ।

त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव
त्वमेव सर्वं मम् देवदेव ।।

यस्याः कदापि वसनान्चल खेलनोत्थ

धन्याति धन्य पवनेन कृतार्थमानी ।

योगीन्द्र दुर्गम गर्तिमधुसूदनोऽपि

तस्या नमोऽस्तु वृषभानुभूवो दिशेऽपि ।।

यो ब्रह्म रूद्र शुक नारद भीष्म मुख्यै

रालक्षितो न सहसा पुरूषस्य तस्य  ।

सद्यो वशिकरण चूर्ण-मनन्त शक्तिं

तं राधिका-चरण रेणु-मनुस्मरामि ।।

वंशी विभूषित करान् नवनीरदाभात्

पीताम्वरादरूण विम्ब फलाधरोष्ठात् ।

पूर्णेन्दु सुन्दर मुखादरन्दि नेत्रात्

कृष्णात्परं किमपि तत्वमहं न जाने ।।

राधा करावचित-पल्लव-बल्लरीके

राधा पदाकं बिलसन् मधुरस्थलीके ।

राधा यशोमुखरमत्त खगावली के

राधा-विहार-विपिने-रमतां मनो में ।।

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आगे ध्यान दे ।

यहाँ तक ही यह स्तुति होती आ रही थी सैकडों वर्षो से यानि मन्दिर के समय से लेकिन आगे एक श्लोक और जोड दिया ।

हम लोग अग्यानी है हम यह समझ नही सकते क्या सही है और क्या सही नही  लेकिन किसी सन्त ने इसमे एक श्लोक और जुडवा दिया है । इस नीचे लिखे श्लोक से और ऊपर लिखे (पूर्णेन्दु सुन्दर ,,) श्लोक में एक विषय बडा विचित्र हो गया है कि पहले श्रीकृष्ण के बिना भक्त किसी और तत्व को नही जानता था लेकिन इस श्लोक के जोडने से श्रीराधा के बिना भक्त किसी और तत्व को नही जानता यानि दोनो को ही कह रहा है यानि दोनो को अलग अलग मान रहा है और दोनो को एक दुसरे से बडा दिखा रहा है । यानि एक तत्व नही मान रहा यह विषय मेरी समझ से परे है । शास्त्र कहते हैं कि श्रीकृष्ण और श्रीराधा को अलग अलग मानना या एक दुसरे से श्रेष्ठ मानना अपराध है हम लोग अग्यानी है हम यह सब नही जानते ये वही बाबा जाने जिसने इसे जोडा है । क्या सही है और क्या नही इस विषय में ठाकुर और ठकुरानी हमे क्षमा करें ।

श्लोक हैं - विद्युल्लता बिलसितानुपमागं कान्तिं

वैदग्ध-कारूण्य-रसाप्लुत-पद्मनेत्राम् ।

वृन्दावन-नव-निकुंज-रसैक तृष्णां

राधां बिना किमपि तत्त्वमहं न जाने ।।

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श्री जी नित्यस्तुति मण्डल - बरसाना

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��    शयन आरती    ��

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धन धन राधिका के चरण
धन धन राधिका के चरण

सुभग शीतल अति सुकोमल
कमल    के     से       वरण
धन धन राधिका के चरण....

रसिक लाल मनमोदकारी
विरह     सागर      तरण
धन धन राधिका के चरण....

दास परमानन्द छिन-छिन
श्याम      जाकि      शरण
धन धन राधिका के चरण....

चापत   चरण   मोहनलाल
चापत   चरण   मोहनलाल

कुँवरि राधे पलंग पौढी
सुन्दरी    नव      वाल
चापत चरण मोहनलाल

कबहूँ करि गहि नैन लावत
कबहुँ     छुबावत     भाल
चापत   चरण   मोहनलाल

नन्ददास प्रभु छवि विलोकत
प्रीति        के         प्रतिपाल
चापत    चरण     मोहनलाल

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��सन्ध्या आरती के बाद औलाई के पश्चात लाडलीलाल शयन भोग आरोगते है उसके पश्चात समस्त भक्तों को शयन आरती के दर्शन होते हैं शयन आरती के तुरन्त ही समस्त व्रजवासियों व भक्तों के द्वारा ऊपर लिखित पद को गा कर प्रिया प्रियतम को शयन कराते हैं इसके उपरान्त समस्त व्रजवासी और भक्तगण प्रिया प्रियतम के शयन प्रसाद प्राप्त कर अपने आपको धन्य धन्य कृतार्थ मानते हुए पुनः श्री लाडली लाल के मंगला आदि आरतियों के दर्शन की लालसा लेकर उनका स्मरण करते हुए उन्ही के चरणों में अपने अपने स्थान पर चले जाते हैं ।

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श्री जी नित्यस्तुति मण्डल - बरसाना

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1 comment:

  1. जैसाकि आपने कहा कि नीचे महात्माजी के द्वारा एक और श्लोक जोड़ दिया गया। जब कृष्ण और राधा कहने में अलग हैं पर वस्तुत: एक ही हैं तो एक को दूसरे से बड़ा या छोटा कहना अपराध ही होगा क्योंकि ऐसा कहना दोनों को स्वत: अलग बताता है। फिर जब दोनों तत्व एक ही हैं तो निर्गुण निराकार रूप में चाहे कृष्ण कहो या राधा क्या अन्तर है! सगुण रूप में किशोरीजी के इशारों पर चलने वाले कन्हैया हैं, जो भक्तों को लीलारूप से आनन्दित करते हैं। राधे राधे।

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