
मोर मुकुट पीताम्बर धारी
तुम तो हो घट-घट मे व्यापी
मेरी अखियाँ दरस को प्यासी
कहाँ मिलोगे हे गिरधारी
ना मै मीरा, ना मै राधा
ना मै जोगन, ना मै दासी
जानू ना मै प्रीत भी साची
ना ही मुझको भक्ति ही आती||1||
गरज बरस के बरसे बदरीया
इत-उत ढूँढू तोके साँवरिया
सोचूँ और फिर खुद पर हँस लूँ
बन के झूमूं मै तो बावरियाँ||2||
ये नही गोकुल, ना ही वृन्दावन
कहां मिलोगे, ओ मेरे मनमोहन
ना मै मीरा, ना मै राधा
क्या दोगे फिर भी तुम दरसन
क्या दोगे मुझको भी दरसन||3||
'' जय श्री राधे कृष्ण ''
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