राधा हरि को देख न पाती यद्यपि आठ प्रहर कानों में

राधा हरि को देख न पाती यद्यपि आठ प्रहर कानों में




राधा हरि को देख न पाती 
यद्यपि आठ प्रहर कानों में मुरली की ध्वनि आती

यमुना-तट पर, वंशीवट पर
बेसुध-सी फिरती पनघट पर 
उठ-उठकर सुर की आहट पर
वन को दौड़ी जाती ||1||

जहां गए थे श्याम छोड़कर
फिर-फिर जाकर उसी मोड़ पर 
उँगली पर दिन जोड़-जोड़कर
आँसू विफल बहाती ||2||

जब सोते में भी हरि आये
शीश मुकुट पट पीट सजाये 
भयवश, सपना टूट न जाए 
पलकें नहीं उठाती ||3||

राधा हरि को देख न पाती 
यद्यपि आठ प्रहर कानों में मुरली की ध्वनि

'' जय श्री राधे कृष्णा ''

   
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