
कृष्णा तेरे नाम पे कुर्बान हो रही .
सूरत को तेरी देख परेशान हो रही |
सिर पर है मुकुट मोर की ,कानों में है कुण्डल ,
वो अधर बांसुरी की मधुर तान हो रही ||१||
फूलो की माला है गले में ,तिलक भाल है ,
मुख चन्द्र मंद हास से ,मैं बेजान हो रही ||२||
न ही कान को इनकी सुधि ,न ही लोक लाज है ,
तेरे दीदार के लिए मोहन ,मैं हैरान हो रही ||३||
न भूलिए मुझे भी ,नाथ तुम सुनो ,
ब्रह्मानंद तेरे दर की मैं दरबान हो गयी ||४||
''जय श्री राधे कृष्णा ''
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