मन में है बसी, बस चाह यही, कि नाम तुम्हारा उच्चारा करूँ |

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मन में है बसी, बस चाह यही, 
कि नाम तुम्हारा उच्चारा करूँ |
बिठला के तुम्हे मन मंदिर में,
 मनमोहनी रूप निहारा करूँ |

भर के दृग पात्र में प्रेम का जल, 
पद पंकज नाथपखारा करुँ |
बन प्रेम पुजारी तुम्हारा प्रभु, 
नित आरती भव्य उतारा करूँ ||1||

तुम अयोग्य जान बिसराओ मुझे, 
पर में ना तुम्हे बिसराया करूँ |
गुणगान करूँ नित ध्यान धरु,
 तुम मान करो में मनाया करूँ  ||2||

तेरे पदपंकज की धूलि, 
नित शीश पे अपने धारा करूँ
तरे प्यारो से प्यार करुँ मै सदा, 
तेरे चाहने वालो को चाहा करूँ ||3||

''जय श्री राधे कृष्णा ''

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