तू ही सागर है ,तू ही किनारा
published on 17 September
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तू ही सागर है ,तू ही किनारा
ढूंढता है तू किस का सहारा |
कभी तन में कभी मन में उलझा ,
तू सदा अपने दमन में उलझा ,
सबसे जीता तू अपनों से हारा ||१||
पाप क्या ,पुण्य क्या ,तू भुला दे ,
कर्म पर फल की चिंता मिटा दे ,
यह परीक्षा न होगी दुबारा ||२||
विष निकाले या अमृत निकाले ,
डूब के थाह अपनी तू पा ले ,
तू ही शिव है ,तू ही शिव का दुलारा ||३||
उस का साया है दर्पण उसी का ,
तेरे सीने में धड़कन उसी का ,
तेरी आँखों में उसका इशारा ||४||
''जय श्री राधे कृष्णा ''
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