
1- क्यों व्यर्थ की चिंता करते हो? किससे व्यर्थ डरते हो? कौन तुम्हें मार सक्ता है?
अात्मा ना पैदा होती है, न मरती है।
2- जो हुअा, वह अच्छा हुअा,जो हो रहा है, वह अच्छा हो रहा है,
जो होगा, वह भी अच्छा ही होगा। तुम भूत का पश्चाताप न करो।
भविष्य की चिन्ता न करो। वर्तमान चल रहा है।
3- तुम्हारा क्या गया, जो तुम रोते हो? तुम क्या लाए थे, जो तुमने खो दिया?
तुमने क्या पैदा किया था, जो नाश हो गया? न तुम कुछ लेकर अाए,
जो लिया यहीं से लिया।जो दिया, यहीं पर दिया। जो लिया, इसी (भगवान) से लिया।
जो दिया, इसी को दिया। खाली हाथ अाए अौर खाली हाथ चले।
4- जो अाज तुम्हारा है,कल अौर किसी का था,परसों किसी अौर का होगा। तुम इसे
अपना समझ कर मग्न हो रहे हो। बस यही प्रसन्नता तुम्हारे दु:खों का कारण है।
5- परिवर्तन संसार का नियम है। जिसे तुम मृत्यु समझते हो, वही तो जीवन है।एक क्षण
में तुम करोड़ों के स्वामी बन जाते हो, दूसरे ही क्षण में तुम दरिद्र हो जाते हो।
मेरा-तेरा, छोटा-बड़ा, अपना-पराया, मन से मिटा दो, फिर सब तुम्हारा है, तुम सबके हो।
6- न यह शरीर तुम्हारा है, न तुम शरीर के हो। यह अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी,अाकाश से बना है
अौर इसी में मिल जायेगा। परन्तु अात्मा स्थिर है - फिर तुम क्या हो?
7- तुम अपने अापको भगवान को अर्पित करो। यही सबसे उत्तम सहारा है। जो इसके सहारे को
जानता है वह भय, चिन्ता, शोक से सर्वदा मुक्त है।
8- जो कुछ भी तू करता है, उसे भगवान को अर्पण करता चल। ऐसा करने से
सदा जीवन-मुक्त का अनंन्द अनुभव करेगा।
''जय श्री राधे कृष्णा ''
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