
प्रीति प्रभु से जोड़ रे मन ,
प्रीति प्रभु से जोड़ |
प्रभु जैसा कोई मीत नहीं है
अनन्य प्रीति सी प्रीत नहीं है
उससे ना मुख मोड़ रे मन ||1||
परम पुरुष के पुणय नाम मे
पावन रूप परम धाम मे,
भ्रम संशय सब छोड़ रे मन ||2||
निंदा कुमति कुसंग कुमति से
कुटिल कर्म कुभाव कुगति से
नेह नाता अब तोड़ रे मन ||3||
''जय श्री राधे कृष्णा ''
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