
मन माखन मेरो चुराय गयो री,
प्यारो-प्यारो मोहन |
नैना से यो बात करे और मुख से कुछ ना बोले,
जब जब बोले मीठ्यो-मीठ्यो बोले, कान मेँ अमृत घोले ,
ओ यो तो सो-सो तीर चलाय गयो री ||१||
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बहुत रंगीलो बहुत छबीलो बहु अनुरागी है मोहन,
चंचल चपल यो रमणी रमता गोपी वल्लभ मोहन ,
ओ यो तो भक्ता को चित्त चुराय गयो री ||२||
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सुंदर श्याम कमल दल लोचन मुख मोचन यो है बृजराज,
यहाँ पे आके ऐसे बिराजे जैसे इनको राज ,
ओ यो तो नैना से दिल मेँ समाय गयो री ||३||
''जय श्री राधे कृष्णा ''
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