जग के रिश्तों से हटकर , भाता है जिसको नटवर

जग के रिश्तों से हटकर , भाता है जिसको नटवर



धुन- धरती कब दूर गगन से जग के रिश्तों से हटकर , भाता है जिसको नटवर , जो प्रेम की भाषा जाने , कान्हा को अपना माने , ऐसी तो ये राधा रानी है , कन्हैया की दीवानी है | जमुना तट पर कान्हा , मुरली मधुर बजाये , वो बरसाने वाली , सुध बुध है बिसराये , वंशी की धुन में नाचे , वो श्याम रंग में राचे || १ || ब्रज को छोड़ने कान्हा , जब मथुरा को आया , राधा हुई दीवानी , प्रेम रंग दिखलाया , जब विरह वेदना जागी , वो बन बैठी अनुरागी || २ || राधा ने मोहन से , सच्ची प्रीत लगाई , प्रेम पुजारन राधा , मोहन के मन को भायी , वी श्याम की बन गई छाया , प्रभु राधेश्याम कहाया || ३ || राधेश्याम जपे जो , भव सागर तर जाये , " बिन्नू " राधे रानी , श्याम से हमें मिलाये , है श्याम की शक्ति राधा , राधा बिन श्याम है आधा || ४ || ''जय श्री राधे कृष्णा ''

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