
अपने श्याम कन्हैया को देखूँ बिना पलक झपकाये.
इन अँखियों की डिब्बियां की ढक्कण , टूट टूट गिर जाये |
बार बार ढक्कण गिरते हैं कान्हाँ ,
परेशान दिल को करते हैं कान्हाँ,
डर लगता है पलक झपकते , श्याम चला ना जाये || १ ||
रक्खो ये नैणा तब तक मिलाये,
बांकी छवि ना इनमें जब तक समाये,
सुणा है इन नैनों के ज़रिये , दिल से दिल टकराये || २ ||
खुले रहते हैं हरदम ढक्कण तुम्हारे,
अगर एक छण भी गिरते ढक्कण हमारे,
चाहे अखियाँ फुट जाये पर , पर ऐसा दिन ना दिखाये || ३ ||
" बनवारी " नैणा मिलाते मिलाते ,
अँखियों में सूरत समाते समाते ,
बनवारी जो कभी गिरे ना , वो ढक्कण लग जाये || ४ ||
''जय श्री राधे कृष्णा ''
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