पता कुछ नहीं है , कहाँ जा रहा हूँ

पता कुछ नहीं है , कहाँ जा रहा हूँ



धुन- मोहब्बत की झूठी
पता कुछ नहीं है , कहाँ जा रहा हूँ जहाँ तूँ ले जाये , वहीँ जा रहा हूँ || टेर ||
तूँ अंधे की लाठी पता बे पतों का मैं फल पा रहा हूँ , अपनी खता का कहाँ से कहाँ ठोकरें खा रहा हूँ || १ ||
कदम जो तेरे , आशियाने में रक्खा मज़ा खूब मैं तेरी , उल्फत का चक्खा फ़ना हो रहा फिर भी , रंग ला रहा हूँ || २ ||
तुम्हारे लीये मैंने , छोड़ा ज़माना मगर तुम भी करने , लगे हो बहाना मैं तिनके के जैसे , बहा जा रहा हूँ || ३ ||
सुनो " श्याम बहादुर " कन्हैया रंगीला ना पहचान पाया , " शिव " तेरी लीला सितम दिलरुबा का , सहा जा रहा हूँ || ४ ||

''जय श्री राधे कृष्णा ''

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