
धुन - चौदहवीं का चाँद हो
साँवरे की याद में , नैना ये रो रहे समझा रहा हूँ मैं मगर , चुप न हो रहे |
तेरे दरश को साँवरा , नैना तरस रहे, टुटा है बाँध आँख का , आँसू बरस रहे, रोते हैं जार जार ये , बेबस से हो रहे || १ ||
दीवानगी में आँख भूल के , नींदे बिसारती, पलकें झपकाना भूल के , रास्ता निहारती, पथरा रहे हैं नींद से पर , ये न सो रहे || २ ||
व्याकुल नयन की वेदना , बढ़ती ही जा रही, कहता " रवि " ये बावरी , मरती ही जा रही, तुम बिन अमुल्य नैन मेरे , आज खो रहे || ३ ||
''जय श्री राधे कृष्णा ''
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