
द्वार पतित इक आयो री किशोरी राधे।
मांगत भीख प्रेम की यद्यपि, पात्र संग नहि लायो री किशोरी राधे ||1||
विष्ठा विषय हेतु नित अब लौं,
शूकर ज्यों भटकायो री किशोरी राधे ||2||
संतन कह्यो नेकु नहिं मान्यो,
कियो सदा मनभायो री किशोरी राधे ||3||
जानि जानि अपराध करत नित,
नेकहुँ नाहिं लजायो री किशोरी राधे ||4||
नर तन हरि हरिजन अनुकम्पा,
सब ही पाय गमायो री किशोरी राधे ||5||
तुम बिनु हेतु कृपालु कृपालुहि,
पुनि काहे बिसरायो री किशोरी राधे ||6||
अज्ञात
''जय श्री राधे कृष्णा ''
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