
तर्ज़-कुण सुणेलो, किन्ने सुणावूं
दर पर बुलाया, फिर क्यूँ भुलाया , एक झलक भी तूने, मुझे ना दिखाया |
जाने कँहा मैंने, कैसी खता की, जिसकी सजा मुझको, इतनी बड़ी दी, लाख है सोचा लेकिन, समझने न पाया ||1||
ऐसी सजा का क्या, हक़दार था मैं, खाटू धरा पर क्या, इक भार था मैं, खाटू में आना मेरा, क्यूँ ना सुहाया ||2||
अब तो "रवि"का दिल, टूट गया है, आपके रहते बाबा, लूट सा गया है, मेरा भरोसा काँहे, तुमने डिगाया ||
रविन्द्र केजरीवाल " रवि "
जय श्री राधे कृष्ण
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