पदरत्नाकर  ६२ - (राग जैतकल्याण-ताल मूल)आते हो तुम बार-बार प्रभु

पदरत्नाकर  ६२ - (राग जैतकल्याण-ताल मूल)आते हो तुम बार-बार प्रभु



पदरत्नाकर  ६२ - (राग जैतकल्याण-ताल मूल)

आते हो तुम बार-बार प्रभु , मेरे मन-मन्दिरके द्वार।
कहते-’खोलो द्वार, मुझे तुम ले लो अंदर करके प्यार’॥

मैं चुप रह जाता, न बोलता, नहीं खोलता हृदय-द्वार।
पुनः खटखटाकर दरवाजा करते बाहर मधुर पुकार ||1||

खोल जरा सा कहकर यों-मैं, अभी काममें हूँ, सरकार।
फिर आना झटपट मैं घरके कर लेता हूँ बंद किंवार ||2||

फिर आते, फिर मैं लौटाता, चलता यही सदा व्यवहार।
पर करुणामय  तुम न ऊबते तिरस्कार सहते हर बार ||3||

दयासिन्धु  मेरी यह दुर्मति हर लो, करो बड़ा उपकार।
नीच-‌अधम मैं अमृत छोड़, पीता हालाहल बारंबार ||4||

अपने सहज दयालु विरदवश, करो नाथ मेरा उद्धार ,
प्रबल मोहधारामें बहते नर-पशुको लो तुरंत उबार ||5||

श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी,

जय श्री राधे कृष्ण


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