
मन गाय रह्यो हरि चिन्तन मे
हरि शरणम श्री हरि शरणम।
तन मे कितने विकार भरे,राग भरे और द्वेष भरे।
छोड के सारे दोषों को,मन गाय रह्यो हरि चिन्तन मे ||1||
जग मे जबसे तूने डाला है,जग मकडी को जाला है।
छोड जगत के बन्धन को,मन रमत रहे हरि चिन्तन मे ||2||
तन कंचन का मत मोह करो,यह माटी मे मिल जाना है।
छोड श्वास की आस सभी,मन निरख रह्यो हरि चिन्तन मे ||3||
जग की बाते जग मे रहकर,मत जग को तुम बदनाम करो।
श्याम मेरे जग लीला रचि गये,मन रास करत हरि चिन्तन मे ||4||
कितने बरस गवांय दिये,हर श्वांस को मोल न भाव किये।
जो श्वांस बची अर्पण कर दो,मन नाच रह्यो हरी चरणन मे ||5||
जय श्री राधे कृष्ण
श्री कृष्णाय समर्पणम्
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