
सांवरे कौन सा रंग तोहे भाये
मोहे समझ न आये
मैं तो जानूं सिर्फ प्रेम को नाता तुम ही तो अडचनें लगाये
लोभ मोह अहंकार की बेड़ियाँ कैसे तुझे दीख जाएँ
आ प्रेम को रंग में रंग जाएँ ||1||
कैसे कैसे तू जाल बिछाए मोह माया में मोहे अटकाए
फिर चाहे तेरे रंग, रंग जाऊं सब कुछ छोड़ द्वार तिहारे आऊँ
तू फिर भी ना अपनाए ||2||
मैंने ओढ़ी प्रीत चुनरिया जिसमे लागी अंसुवन लड़ियाँ
और ना राह कोई नज़र मोहे आये मन पर इक श्याम रंग ही चढत है
दूजा न कोई रंग मोहे भाये अब बता जरा कौन से रंग में
चूनर रंग लूँ जो तेरे मन को भाये ||3||
तुमने मुझको मुझसे छीन लिया है अपने वश में मन मेरा किया है
जीवन की अब सिर्फ रीत निभाती हूँ प्रीत तो सिर्फ तुम्ही से निभाती हूँ
फिर भी मेरी प्रीत तुझे समझ ना आये ||4||
मन का जोग ले लिया है सिर्फ तन ही दुनिया को दिया है
फिर भी संदेह के बादल छितराए तुझे इतना भी न भाये
बता फिर कैसे हम जी पाएं ||5||
''जय श्री राधे कृष्णा ''
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