
राम कृष्ण कहिये उठि भोर
अवध ईश ये धनुष धरे हैं
वो बृज माखन चोर ||1||
इनके छत्र चंवर सिंघासन
भरत शत्रुहन लक्ष्मण जोर ||2||
उनके लकुट मुकुट पीताम्बर
नित गैयन संग नंदकिसोर ||3||
इन सागर में सिला तराई
अरे, उन राख्यो गिरि नख की कोर ||4||
'नंददास' प्रभु सब तज भजिये
जैसे, जैसे निरखत चंद्र चकोर||5||
''जय श्री राधे कृष्णा ''
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