
वैकुण्ठ में जा कर,
मुरली का बजाना भूल गए
मन कुञ्ज में आ कर
क्यों रास रचाना भूल गए
जब यहाँ से गए तो तुम मोहन,
तो कह के गए थे आऊँगा
आये ना अभी तक तुम कान्हा,
वादे का निभाना भूल गए.||1||
हे नाथ तुम्हारे भक्तों पर,
विपदा के बादल छाये हैं
ब्रज से जा कर हे नन्द नदन,
पर्वत का उठाना भूल गए.||2||
तारा ना अगर मुझ पापी को
तो संसार कहेगा क्या तुमको
पतितों के पावन भार हरो,
पापी को तराना भूल गए||3||
''जय श्री राधे कृष्णा ''
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