
हे गौरी पुत्र गणेश प्रथम तुझे मनाएँ।
मेटो संकट क्लेश प्रथम तुझे मनाएँ॥
पिता तुम्हारे हैँ शंकर, पार्वती है माता।
मूषक की है सवारी, रिद्धि सिद्धि के दाता।
सबके तुम भरते भण्डार प्रथम तुझे मनाएँ॥१॥
देवोँ मेँ देव बड़े हो तुम कहलाते।
भक्तोँ के अटके काम हो बनाते।
तेरी कृपा से होते निहाल प्रथम तुझे मनाएँ॥२॥
मेवा मिश्री भोग लगे भर-भर थाली।
सन्तजन करके सेवा पाते हैँ खुशहाली।
तेरी शक्ति का ना पार प्रथम तुझे मनाएँ॥३॥
आओ गजानन कीर्तन मेँ देखेँ तेरी राह।
भक्तो के काज सँवारो कहे जोड़ के हाथ।
देना बुद्धि बल ज्ञान प्रथम तुझे मनाएँ॥४॥
''जय श्री राधे कृष्णा ''
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