
धीरे-धीरे वंशी की धुन, चुरा रही है मेरा दिल
कहाँ छुप गया मनमोहन तू, जली जा रही मैं तिल तिल
सुनकर ये आवाज़ निराली, दिल धक् धक् करने लगता है
निर्देशित -सा हर पग मेरा, तेरी और बढ़ने लगता है
ना बुद्धि पर जोर रहा है,ना वश में है मेरा दिल||1||
सात सुरों का जाल तुम्हारा,, मुझको कैद किये जाता है
कोई प्रार्थना कोई निवेदन, ना माने कैसा नाता है
तुझको पाकर मनमोहन क्यूँ,मैं जाती फूलों -सी खिल ||2||
बिन धागे खिंचती आती हूँ, सम्मोहित-सी तेरी और
बाँध दिया कैसे बंधन में, थाम के मेरी जीवन डोर
बनी बावरी भटक रही हूँ,कान्हा जल्दी आके मिल ||3||
''जय श्री राधे कृष्णा ''
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