
मैरी छोटी सी है नाव, तेरे जादूगर पाँव।
मोहे डर लागे राम, कैसे बिठाऊ तोहे नाव में।
जब पत्थर से बन गई नारी, ये तो काठ की नाव हमारी।
इससे करूँ रोजगार, पालूँ सारा परिवार।
सुनो सुनो जी सरकार। कैसे बिठाऊ तोहे नाव में।|1`||
ऐक मानो तो बात बताऊँ, तेरे चरणों की धूल हटाऊँ।
मैरा शंशय होवे दूर, अगर तुम्हें हो मंजूर।
सुनो सुनो जी हजूर, पीछे बैठाऊँ तोहे नाव में।|2||
बड़े प्रेम से चरणों को धोया, पाप जनम जनम का खोया।
बड़ा हुआ वो प्रसन्न, किया राम दर्शन।
संग सीया और लखन, आओ बैठो प्रभु जी मैरी नाव मे||3||
धीरे धीरे वो नाव चलाता, वो तो गीत खुशी के गाता।
सोचे यही मन में, सूरज डूबे छन में।
नहीं जावे वन में, बैठे रहे प्रभु जी मैरी नाव में।|4||
(नाव से उतरनेके बाद प्रभु के इशारे पर सीता जी उतराई देती है।)
लेलों लेलों केवट उतराई, मैरे पास कछु नहीं भाई।
ये तो करलो तुम स्वीकार, तेरा बेड़ा होवे पार।
तेरी होगी जय जयकार, बैठ आए जो हम तेरी नाव में।|5||
( केवट कहता है। )
जैसे तुम हो खैवइया वैसे हम है, भाई भाई से लेने मे शरम है।
मैंने नदी कराई पार, करना भव सागर से पार।
भक्तों की पुकार , लौट आना प्रभु जी मैरी नाव मे।|6||
''जय श्री राधे कृष्णा ''
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