
सालिग्रामजी सुनो विनती मोरी,
यह वरदान दया कर पाऊँ ।।
प्रातः समय उठ मंजन कर के,
प्रेम सहित स्नान कराऊँ।
चन्दन धूप दीप तुलसी दल,
बरण बरण का मैं फूल चढाऊँ ।।1||
तुम्हरे सनमुख नृत्य करूँप्रभु,
घंटा शंखमृदंग बजाऊँ ।
चरण धोय चरणामृत लेकर,
कुटुम्ब सहित वैकुण्ठ सिधाऊँ ।।2||
जो कुछ रूखा सूखाघर में,
भोग लगाय के भोजन पाऊँ।
मन बहुतेरे पाप किये,
परिक्रमा के साथ बहाऊँ ।।3||
ऐसी कृपा करो प्रभु मुझ पर,
जम के द्वारे जाने ना पाऊँ ।
भक्तो की विनती यही है,
हरि दासन को दास कहाऊँ ।।4||
''जय श्री राधे कृष्णा ''
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