
कभी नचाया बना के राधा , कभी बना के श्याम
कभी बनाया साकी मुझको , कभी पिलाया जाम
बड़ा अनूठा रास रचाया , मनमोहन घनश्याम
तूने मनमोहन घनश्याम
कलियुग में भी तेरी मुरलिया बाज रही चहुँ ओर,
जिसे पुकारे वो ही जाने श्याम छिपे किस ठौर
और राधिका दौड़ रही है छोड़ के सारे काम ||1||
गीत भी है संगीत भी है, सबके मन में प्रीत भी है
राधा सी मतवाली भी है, मोहन सा मनमीत भी है
रास-नृत्य-रस भिगो रहा है मन-वृन्दावन-धाम
||2||
सत्य हो गए स्वप्न वो सारे , जो देखे थे गोपी ने
मन मंदिर में श्याम पधारे, प्रेम-सुधा-रस को पीने
बड़े भाग्य रे आज हमारे, श्याम मिले बे-दाम ||3||
''जय श्री राधे कृष्णा '
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